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(७४) महा-मोहनीय (३०) स्थानक
दोहरा निर्मोही पद साधवा, निर्मोही गुरु राज । चंदू परम कृपालु ने, परा भक्तिए आज ।।१।।
व अनेक अति दुःखदा, रौद्र वर्तना जेह । महा मोहनीय कम नु, शास्त्रो लक्षण एह ।।२।। त्रीश स्थानको तेहना, शुद्ध भाव थी आज । प्रतिक्रमण थी हुं चढू सहजानंद जहाज ॥३॥
ढाल-हवे राणी पदमावती । संक्लिष्ट चित्ते मैं हण्या, त्रस जीवना प्राण । पाद घाते जल डूबवी, पहेलु ए मोह ठाण ॥१॥ ते मुझ मिच्छामि दुक्कडं ॥ आंकणी ॥ आर्द्र चर्मादिक शस्त्र थी, तोड्या अंग उपांग । तिरि मानव वध बंधने, बीजा भेद नो संग ॥॥ ते॥ निर अपराधी सादिना गुंगडावी ने मुख। त्रिने प्राणो अपहरया, दीधा असह्य दुख ॥३।। ते०॥ धिखती धरा ना प्यूह थी, वन्हि धूम्र प्रयोगे। जीव आता मैं हण्य मोह तुर्य ना योगे ॥४॥ ते ॥ कत्लखाने क्रूरता धरी, धड़ शीर्ष विदारी। पंचम स्थाने हुं थयो, घोर पाप आचारी ॥५॥ ते० ।। छठे विष योगादि थी, कीधा विश्वासघात । निज नै मार्या कैक ने, थई कालनो भात ॥६॥ ते० ॥
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