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ते काज जग अनुकूलता प्रतिकूलता चित्त ना धरो ॥२॥ शुमान के अपमानथी भुंडु भलु थाय आतमा ? अपकीर्ति कीर्ति रहे अहिं तन राख सह शमशानमां ; उपयोग शुद्ध करवा तजो संकल्प विकल्पो बधा, स्मरो साधना प्रभु-पार्श्व - वीर - जिणंदनी क्षण क्षण मुदा ||३|| कोई पण प्रकारे राग-द्वेष तजो भजो मिज सत्वने, सत्पुरुषने शरणे रहीने अनुभवो निज तत्वने; अलगा रहो मत-पंथथी ए शिष्ट सम्मत धर्म छे, नृपचंद्र संत-स्वरूप सहजानंद - कंदनो
मर्म छे ||४||
[ श्रीमद् राजचंद्र पत्रांक ३७ ]
(६५) अंतिम मांगलिक प्रार्थना
[ ॐ जय जय जय जिनदेव.. ए चाल] ॐ परम कृपालु देव ! जय परम कृपालु देव !!! हे परम कृपालु देव !!! दुःखोनो,
जन्म जरा मरणादिक सर्व
अत्यन्त क्षय करनार ; जे अत्यं० (२) एवो वीतराग पुरुषोनो, तीर्थङ्कर मुनि जननो, रत्नत्रयी पथ सार० ॐ परम० १
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