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सहभागी कर्यो केइ सज्जनो रे लोल, एम श्रमदाने पूर्या प्राण रे; अंतेवासी जनो ने सौंपी ने रे लोल, शुकराजे कर्य महाप्रयाण रे... वडवा० ५ तेनु' अर्द्ध शताब्दी दिन आज छेरे लोल कर्यु हार्दिक स्वागत आम रे अवाड़ी सदा लीलीछम रहो रे लोल, सहजानंदघन धाम रे
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... वड़वा० ६
श्रीमद् के गद्य वचनामृत के पद्य भावानुवाद (६१) सदगुरु - माहात्म्य-पद
कव्वाली
अहो सत्पुरुष ना वचनो ! अहो मुद्रा !! अहो सत्संग !!! सुतेली चेतना जगवे, पडेली वृत्तिए दृढ रंग...१ जे दर्शन मात्र थी निर्दोष - अपूर्व स्वभाव ने प्रेरे ; स्वरूप प्रतीति अवगाढी, अप्रमत्त संयमे हेरे...२ चढावी क्षपक श्रेणी मां, धरावे ध्यान शुक्ल अनन्य ; पूर्ण वीतराग निर्विकल्प, आप स्वभाव दायक धन्य ! ३ अयोगी भाव थी छल्ले, स्व अव्याबाध सिद्ध अनंत ;
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पावापुरी २-८-५३
स्थिति दाता अहो गुरुराज ! वर्त्तो कालत्रय जयवंत...४ अहो गुरुराज नी करुणा, अनंतु भव भूमण कापे ; अनादिय रंकता टाली, जे सहजानंद पद स्थापे... ५ [श्रीमद राजचंद्र पत्रांक ३३४८७५ का पद्य रूप]
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