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(५८) नूतन वर्षाभिनंदन पद
नूतन वर्षाभिनंदन, हो राज मंडली ने ; गुरुराज ना ओ ! नंदन, रहेज्यो हली मली ने ...१ ओ राज चरण वासी, सौ राज पथ प्रवासी ; गुरुराज बोध प्रांशी, रहेज्यो हली मली ने...३ आज्ञा स्व हृदय न्यासी, परा भक्ति ने प्रकाशी ; कुगति- कुधी विनाशी, रहेज्यो हली मली ने...३ सुविचार भेद हो पण, नहिं प्रीति भेद हो क्षण ; सदाचार भेद मां पण, रहेजो हली मली ने...४ सत्संग गंग न्हायी, सहजात्म स्वरूप घ्यायी करी चित्त शुद्धि भाई, रहेजो हली मली ने...५ आ सहजानंदघन नी, आशीष शुद्ध मन नी ;
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प्राप्ति करो स्वधन नी, रहेजो हली मली ने...६
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(५९) धर्म मर्म
म वह हूं जो द्रष्टा ज्ञाता, ये सब दृश्य ज्ञेय अछता ;
धर्म-मर्म का बजे नगारा, परमकृपालु देव दुवारा... आत्म भिन्न जड़ तन धन सारा, झूठा है यह जगत पसारा ;
अहं मम बुद्धि छोड़ दो प्यारा, मोह क्षोभ से रहो नितन्यारा...
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धर्म० १
१३-१०-६३
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