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(५६) गुरु-महिमा
राग-कागड़ो हंसा ! गुरु-शरण में जा-जा, कर सद्गुरु-पद पूजा... पाद प्रक्षालन क्षीर-सागर से, शुचि हो क्षीरोदक ला; गंधोदक ले पद्मद्रहे जा, पद्म सहस्रदल ले आ...हं. रत्नद्वीप से रनो लाकर, भाव शुद्ध ज्ञान-पूजा ; स्वस्तिक हेतु मानसरोवर, ला मुक्ताफल ताजा. हं० २ आत्मार्थे बोधामृत पय पी, तुं कर तृप्त कलेजा ; ज्ञेय भिन्न ज्ञानमूर्ति सो, अहम् सोहं रटे जा. हं० ३ सोहं-हंसो रटत-रटत कर, देहाध्यास इलाजा; मोह क्षोभ मिटाहो अपना, सहजानंद पद राजा. हं०४
(५७) आशीर्वाद-पद
. राग-कान्हड़ो मुमुक्षु ! आत्म प्रदीप अपनावो... ___ आज तमे मिथ्यान्धकार हटावो...मु. परम कृपालु देव कृपा थी, सम्यग् श्रद्धा जमावो ; परम गुरु सहजात्म स्वरूप हूं, आत्म भावना भावो. मु० १ प्राण वाणी रस मंत्र स्मरण थी, दिव्य संगीत जगावो ; दिव्य सुगंधी दिव्य सुधारस, दिव्य ज्योति प्रगटावो...मु० २ दिव्य मूर्त्तिना दिव्य स्पर्शेनिज, आत्म प्रदेश हसावो ; राज प्रभुना आज आशीष ए, सहजानंद पद पावो मु० ३
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