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(२) वर्तमान चतुर्विशति जिन स्तुतयः ॐ
ता० २४-११-६० ऋषभ जिन स्तुति १
प्रीति अनुष्ठाने प्रेम ऋषभ-पद जोड़ी; प्रभु-छबि चित्त झलक्ये पराभक्ति पथ दोड़ी ; प्रभु आज्ञा तत्पर दृष्टिमोह गढ़ तोड़ी ;
जीत-क्षोभ असंगे सहजानंद रंग रोली...१ अजित जिन स्तुति २
दिशिपूर्व अजीत-पथ चित्प्रकाश-उद्योत ;
ग्-दृश्य विछोड़ी जोड़ी द्रष्टा-पोत ; जगी अन्तः ज्योति त्यां दृष्टि-अंधता-मोत ;
लगी ज्ञान निष्टा ज्यां सहजानंदघन स्रोत...२ संभव जिन स्तुति ३
परिग्रह-मूर्छा त्यां भय वली दंभाचार ; संताज्ञा-अवज्ञा सन्मारग तिरस्कार ; टले अपात्रता ए अनंत-कषाय प्रकार ;
संभव-प्रभु शरणे सहजानंदघन सार...३ चैत्यवन्दन के बाद स्तवन और अन्त में स्तुति बोली जाती है । अतः चौवीस जिन के चैत्यवन्दनों की रचना के बाद उस क्रम की पूर्ति रूप में यह स्तुति चौवीसी रची गई है।
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