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(१२) श्री वीर स्तवन
बाल पणे आपण साथी सौ, रम्या आमलकी केली, लोभ फणी मद दैत्य ने पटकी, आप वरया शिव वेली...
हो प्रभु जी मुझ रंक ने भव ठेली -१ वालवो'तो आ बाल बीकण पण, मैत्री धरम अनुसारे अकलपेटा मौज उडावौ, छाना जई भव व्हारे...
हो प्रभु जी तुम विण मुझ कोण तारे १...२ आप समान करे लक्षाधिप, मांडवगढ सुसाधरमी क्ष यिक नव निधि नाथ तमारे, आपो ने अंश अकरमी...
हो प्रभु जी थाऊं सद् दर्शन मर्मी...३ निष्कारण करूणा - रस - सागर, तारक विरुद वडेरो जेवो तेवो पण साथी तमारो, नहिं छोडुं हवे केडो...
हो प्रभु जी मुझने झटपट तेड़ो...४ विरह खमाय न पीर तमारो, नयन वहे जल धारा आप मल्या थी आप नी संगे, उजवं हर्ष फुवारा...
___ हो प्रभु जी सहजानंद अपारा...५
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