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साधु विहार बंध कीधो सलोमे, कीधा साधु जेल भंगी दा० बोध्यो तेने करी संघ तीर्थो नी, रक्षा गो मच्छादि अंगी.. दा०४ कडीआ पींचा दि जैनो बनाव्या, रत्नत्रयी ना रंगी...दा० भद्र श्रमण बे हजारो मूकी ने, नाथ थया सुर संगी दा०५ १ प्राणी २ गोत्रनुं नाम, अमदाबाद मां छे ओसवालो ६ गोत्रनाम ।
(२९) मंगल-प्रार्थना ॐ ह्री दत्त कुशल चंद्र सूरि ( २) युगप्रधान शक्ति भूरी, ध्यावं दादा ! सहज नूरी ; । भिन्नता विभाव चूरी, करो संघ विघन दूरी. ॐ० १ डाकिनी शाकिनी प्रेत भूत, यक्ष राक्षसो विद्युत, करत र काल दूत, समरत नाम मंत्र युक्त. ॐ०२ अमने युगप्रधान आपो, शासन ना सहु संकट कापो, श्री जिनरत्नत्रयी आलापो, “भद्र" मंगल घर घर थापो. ॐ०३
(३०) शिक्षा गुरु स्तुति
मेरे गुरु रटें मंत्र नवकार, यही है चौद पूरव का सार ; अरिहंत सिद्ध सूरि पाठक मुनि, परमेष्ठि अविकार ; पांचों पद में सार आतमा, साध्य-साधक सुविचार मरे०१ ज्ञायक लक्षे आत्मभावना, भावत उघडे द्वार ;
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