________________
राजपुर ( देहरादून )
१६-१०-६० (३२) दीक्षा-शिक्षा गुरु स्तुति वन्दना वन्दना वन्दना रे ! गुरु 'रत्न लब्धि' पद वन्दना, वन्दतां थाय मद-मर्द ना रे ! गुरु 'रत्नलब्धि' पद वन्दना... पूर्व संस्कार वश मोहमयी मां, थइ विरक्ति उद्भासना; रे गुरु० जागी लब्धि-पंच करण विशुद्धि, काल क्षयोपशम देशना; रे गुरु०१ मित्रो गया 'मोहन' गुरू शरणे, लग्न पूर्वे तजी यौवना; रे गुरु० आज्ञा मल्ये गया 'राज' गुरू चरणे, थया निग्रंथ बन्न
सज्जना; रे गुरु०२ साध्वाचार प्रकरण व्याकरण कोष, ग्रन्थो भण्या काव्य चंदना; गुरू० आगम-गम-ग्रही जप-तप पूर्वक, पठन-पाठन-वृत्ति मंदना; रे गुरु०३ विभिन्न देशे उग्र-विहारे, कर्ता सद्धर्म प्रभावना; रे गुरु० साधु-श्रावक व्रत पाले-पलावे निच्छल निश्चल भावना; रे गुरु० ४ संघे ठव्या 'सूरि-पाठक-पद' पर, तोये जरा अभिमान ना; रे गुरु० नाम राख्या 'जिनरत्नसूरी'अने, 'लन्धि पाठक' छे धी-धना,रेगु०५ दीक्षागुरु देह त्यागी थया सुर, भवनपति मंद-वासना; रे गुरु० शिक्षागुरु विद्यमाना आक्षेत्र, भव-भीरु भव्य शासना; गुरु०६ दीक्षा-शिक्षा गुरु म्हारा पूज्योए, एथी करू अभिवादना; रे गुरु० भद्रभावे उपकार स्तवी लहुं, सहजानंद-पद व्यंजना; रे गुरु०७
-
... राजमुनिजी
४६
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org