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प्रभु दर्शन पूजन भावे, भवि नर नारी केई आवे । पावे बोधि बीज विकास, दर्शन पाया सूरत में ॥ ६ । अधिष्ठाता परचा पूरे, रोग शोक संकट सब चूरे अक्षय संपत लील विलास, दर्शन पाया सुरत में ॥ १० ॥ जिनरत्नसूरि सुपसाये, मुनि 'भद्र' प्रभु स्तव गावे । थुणते अष्ट कर्म तृण नाश, दर्शन पाया सूरत में ॥। ११ ॥
(११) श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथ स्तवन चाल - मेरी अरजी
तारो सहस्रफणा प्रभु पार्श्व मने ( २ ) रझली थाक्यो घनघोर संसार वने ( आंकणी ) इग विगल तिरि नर देव नारक, भज्या वेष अनंत मैं ; चोरासी लख चौटा भमी, आस्वाद्यो दुख अनंत में ; जाणो आप सहु मुझ वीतक ने ॥ तारो० ॥ १ ॥ पुण्योदये मानव पणे हुं, अवतर्यो आर्हत् कुले ; मोह जाल मां मुंझाइ ने, बिंधायो हुं संशय शुले ; वांछयो पुद्गल पोष तणा सुख ने || तारो० ॥ २ ॥ छोडी निरंजन देव ने, पूज्या मिथ्यात्वी देव मैं ; चकी चिन्तामणि रत्न हुं, ललचायो कुमत कांच में; मूकी कल्प सेव्या आक बॉवल ने ॥ तारो ॥ ३ ॥
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