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(२४) प्रभु-मिलन स्तवन
[ऋषम जिनेश्वर प्रीतम माहरोरे कहो सखि ! प्राणेश्वर केम भेटीओ रे ? प्रियतम तो वीतराग ; अगम देश जइ अलखपुरे वश्यारे, रूपादिक करी त्याग • कहो० १ तार टपाल के फोन पहोंचे नहीं रे, स्टीमर रेल विमान ; प्होंचे न हरि-हर-देव संदेशडो रे, थाक्या अति मतिमानकहो०२ हारयां विविध धर्म-मत अनुसरीरे, विविध स्वांग-व्रतधार ; होम-हवन-तप-जप करीकरी पच्या रे, लह्यो न मिलन प्रकार कहो०३ चारे खूटे सौ तीरथ फर्या रे, नाह्या यमुना गंग ; वेद-वेदांग-पुराण कंठे कर्यारे, पण सौ विफल तरंग : 'कहो० ४ सुमति कहै सखि श्रद्धा सांभलो रे, प्रियतम हृदय मझार ; राग तज़ी चिद् धातु शुद्ध करोरे, स्वामि प्रकृति अनुसार • कहो०५ उपयोगे उपयोग एकत्वता रे, ए पति मिलन प्रकार ; अभिन्न-संगम चेतन-चेतना रे, सहजानंदघन सार...कहो० ६ (२५) प्रात्त विनंती
राग-कनडी त्रिताल हो प्रभुजी! मुझ भूल माफ करों नहीं हुं योगी नहीं हुं भोगी, तारो दास खरो ... हो प्रभुजी नहीं हुं रोगी नहीं हु निरोगी, मारी पीड़ हरो... हो प्रभुजी तुझ गुण पागी सुरता जागी, नाथ हवे उद्धरो ... हो प्रभुजी दर्शन दीजे ढील न कीजे, दिल नुं दर्द हरो ... हो प्रभुजी अमी रस क्यारी मुद्रा तारी, निशदिन नयन तरो.. हो प्रभुजी आवो श्वामी मुझ उर माही, सहजानन्द भरो .. हो प्रेभुजी
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