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जलाव · मैं० ७
षट् चक्र-क्रम भेदत प्रभु को मेरुदण्ड शिर लाव. मैं० ४ कमल सहस्रदल-कर्णिका-स्थित, पाण्डुशिला पर ठाव. मैं ५ ज्ञान सुधाजल सिंचत - सिंचत, प्रभु सर्वंग नहला व मैं ० ६ ज्ञान- दीपक निज ध्यान -धूप से, आठों कर्म हर्षित कमल - सुमन वृत्ति चुन-चुन, प्रभु पद पगर दिव्य गंध प्रभु अक्षत अंगे, लेपत रोम सहजानंद रस तृप्त नैवेद्य, द्वन्द्व दुखादि नसावें. मैं० १० निराकार साकार अभेदे, आत्म सिद्धि फल पाव मैं० ११ (२३) प्रभु तेरे अनंत नाम
भराव· मैं०८
नचाहूँ मैं०६
भा० सु० १५ सं० २०२५ हम्पी २५-१-६६
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प्रभु तारा छे अनंत नाम, कये नामे जपुं जपमाला । घट-घट आतम राम, कये ठामे शोधुं पग पाला ॥ जिन-जिनेश्वर देव तीर्थंकर, हरिहर बुद्ध भगवान • कये० ब्रह्मा विष्णु महेश ईश्वर, अल्ला खुदा इन्सान कये ० १ अलख निरंजन सिद्ध परम तत्व, सत् चिदानंद ईश• • •कये ० प्रभु परमात्मा परब्रह्म शंकर, शिव शंभु जगदीश · · · कये० २ अज अविनाशी अक्षर तारक, दीनानाथ दीनबंधु.. कये ० एम अनेक रूपे तुं एक छो, अन्याबाध सुख- सिंधु कये० ३ परमगुरु सम सत्ताधारी, सहज आत्म स्वरूप• • •कये ० सहजात्म स्वरूप परम गुरू ए, नाम रटुं निज स्वरूप• • •कये ० ४ मंदिर मस्जिद के नहीं गिरजाघर, शक्ति रूपे घट परमकृपालु रूपे प्रगट तु, सहजानंदघन
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मांय • • •कये ० त्यांय • कये० ५
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