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श्रीकुन्थुजिन स्तुति १७
अररर ! भूम-भूम !! छी !!! जड़ मन नो शो दोष ? चेतन निज भूले करे रोष न तोष ; शुद्ध भाव रमे जो मन-विलीन निज-कोष ;
प्रभु कुन्थु कृपाथी सहजानंद-रस पोष...१७ श्री अरजिन स्तुति १८
सम् अयति-द्रव्य सौ अने चेतन निरधार ; चित्त त्रिविध कर्म स्थित ते पर समय विकार ; ज्ञायक सत्ता स्थिति चेतन स्वसमय सार ;
अर धर्म-मर्म अ सहजानंद अविकार...१८ श्रीमल्लिजिन स्तुति १६
चिद्-जड़ अभान त्यां सुषुप्त-चेतन अंध ; . केवल जड़ भाने स्वप्न सृष्टि सम्बन्ध ; निज-पर विज्ञाने जाग्रत भेदक संघ ;
प्रभु मल्लि उजागर केवल ज्ञानानंद...१६ मुनिसुव्रत स्तुति २०
भिन्न-भिन्न मत दर्शन अक-अक नयवाद ; निरपेक्ष दृष्टिए वध्यो धर्म विषवाद ; टाले मुनिसुव्रत समन्वय स्याद्वाद; . सापेक्ष दृष्टिए सहजानंद रस-स्वाद...२०
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