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(५) सिद्धक्षेत्र श्री कैलाश-अष्टापद
चलो हँस ! अष्टापद कैलाश, कर्म आठ हो नाश...चलो० ऋषभ प्रभु निर्वाण-भूमि यही, हिम छायो चौ पास ; सगर गंग नाले शुचि होकर, भव परिक्रमा खलास...चलो० १ पश्चिम दिशि नभ-मग चढ श्रेणि, आठ तला क्रम जास; सप्तम तल गढ फाटक हो चढ, पैड़ी आठ उल्लास...चलो० २ अष्टम तल सब चौदह मंदिर, मध्य श्री ऋषभ आवास ; रत्न बिंब मणि मंडित मंदिर, अद्भुत दिव्य प्रकाश...चलो० ३ द्वार खड़े गजराज दुतर्फा, तरु एक प्रांगण तास ; मंदिर चार विदिशि उत्तर दिशि, आठ एक पैड़ी पास.. चलो०४ सप्तम तल उत्तर दिशि दश मिल वर्तमान जिन वास; चत्वारि अट्ठ दस दोय मंदिर, अनुभव क्रम यही खास...चलो०५ सप्तम पूरब दक्षिण श्रेणी, चौबीस चौकोर प्रास ; पूर्व अतीत अनागत दक्षिण, दो चौवीसी दुपास...चलो०६ जिनालय बहत्तर अरु मुनि, निर्वाण-स्तूप सुनिवास ; पराभक्ति सह वन्दत पूजत, सहजानंद विलास...चलो०७ ता० ७-५-६०
___ * ३ रल बिंब चरण चिन्ह मंडित, सिंहनिसादी खास।
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