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सत्संगी रंगी थई, धरिये आतम-ध्यान ; सत्-श्रद्धा लयलीन थई, तो प्रगटे सद्-ज्ञान "२ दृग-ज्ञाने निज रूप मां, रमतो आप्तम राम ;
रनयी नी एकता, सहजानंदघन स्वाम ३ नमि जिन चै० २१
कुल धर्म नास्तिक थई, सत् समझ अनेकान्त ; चिद्-जड़-सत्ता नियत छ, सांख्य-योग सिद्धांत १ अथिर-पर्यय द्रव्य-थिर, नियत सुगत-वेदान्त ; लोक-प्रपंच तजी भजो, अलोक आत्म अभान्त: २ नमि जिनवर उत्तमांग मां, षट् दर्शन पद-द्रव्य ;
गुरु गम थी आस्तिक बने, सहजानंदघन भव्य ३ नेमिनाथ चै० २२
वीतरागता पामवा, नेमि-चरण सुविचार ; राग ऋणे-जाने चढ्या, पछी चव्या गिरनार...१ एक बार रागे बंध्या, छूटे विरला कोय ; माटे राग न कीजिए, वीतराग वण लोय २
काम-स्नेह-हग-राग-क्षय, भगवद-भक्ति पसाय ;
___ सहजानंदघन दम्पति, सति-पति प्रणमुं पाय...३ पार्श्वनाथ चै० २३
चेतन चेतना फर्सतां, पूर्ण ध्रव तद्रप ; चिद्घन मूर्ति पार्श्व-प्रभु, केवलज्ञान स्वरूप...१
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