Book Title: Ratna karavatarikadya sloka satarthi Author(s): Jinmanikyavijay, Bechardas Doshi Publisher: L D Indology AhmedabadPage 17
________________ १२ फोटो प्रतिनी प्रत्येक प्लेटनी लम्बाई २५-१ अने पहोळाई १०.७ सें. मी. छे. छेल्ली ६१मी प्लेटनी लम्बाई २४ ६ सें. मी. छे. प्रत्येक प्लेटमां १७ लाइनो छे, फक्त ५९मी प्लेटमा २१ लाइनो छे अने ६१मी प्लेटमां तो मात्र १५ लाइनो छे. फोटोकोपिना ६१मी प्लेटमां छेक छेल्ले मोटा अक्षरोमां लखेल छे के 'रत्नाकर अवतारिकाआद्यश्लोक शत अर्थ. ' शतार्थीनी प्रत पं० संघमाणिक्य गणि नामना मुनिए लखेल छे अने प्रतिलेखके जणावेल छे के पं. सहज मन्दिरगणिप्रमुखमुनिओए आ प्रतने वाच्यमान करीने कृतार्थ करवी. प्रतिनी नोंध आ प्रमाणे छे शतार्थी प्रतिर्लिखिता पूज्याराध्य श्रीपण्डितप्रकाण्डमण्डली मौलिरत्नपूज्यपण्डितश्रीकुलरत्नशिष्यपरमाणुना पं. संघमाणिक्यगणिना । वाच्यमाना पं. सहजमन्दिरगणिप्रमुखैः कृतार्थीकार्या ॥ इति भद्रम् || शुभमस्तु ॥ श्रीरस्तु || २. - प्रेसकोषी फोटो कोपी उपरथी शतार्थीनी प्रेसकोपी वडोदरावाळा जैनपण्डित श्रीलालचन्द्रजी भगवानदास द्वारा करवामां आवेल छे. प्रेसकोपीमां ज्यां ज्यां शतार्थीकारे वृत्तिमां सिद्धहेमनां सूत्रोनो उपयोग करेल छे त्यां त्यां पण्डितजीए सिद्धहेमनां अध्याय पाद अने सूत्रांको नोंघेला छे अने ज्यां क्यांक एवी नोंध रही गएली त्यां सम्पादके ए अङ्को नोंघेला छे अने वृत्तिमां ज्यां ज्यां उणादिनो उल्लेख आवेल छे त्यां ए अवतरणनां उणादिगत मूळ स्थानाने शोधीने स्वयं सम्पादके नोवेलां छे तथा वृत्तिमां ज्यां ज्यां शब्दकोशनां अवतरणो वृत्तिकारे आपेलां छे तेमांनां घणां खरानां मूळ स्थानो पण्डितजीए नोंघेलां छे अने ए . पण ज्यां नहीं नोंधाएलां त्यां सम्पादके तेनी पूर्ति करेल छे, छतां सम्पादननुं कार्य करती वखते उपलब्ध तमाम एकाक्षरी कोशोनां पुस्तको सम्पादकने नहीं मळेलां, एथी एकाक्षरी कोशनां तमाम अवतरणानां मूळ स्थानो बतावी शकायां नथी. पण्डितजीए शतार्थीनी प्रेसकोपी सुवाच्य अक्षरोमां करेल छे. ज्यारे ए प्रेसकोपी आखी वांची गयो त्यारे तेमां केटलेक स्थाने सुधारा वधारा करवानी जरूरत लागी तथा अर्थनी विविधता समजाववा माटे बीजुं पण केटलंक उमेरवानी आवश्यकता जणायाथी प्राप्त प्रेसकोपीमां ए बधुं करीने तें उपरथी संस्थाना कार्यकर भाई चिमनलाल भोजक द्वारा बीजी प्रेसकोपी तैयार कराववामां आवी अने ते द्वारा प्रस्तुत संपादन तैयार थयेल छे. मूळ प्रेसकोपी माटे पण्डित लालचन्दजी जरूर अभिनन्दनीय छे. अवतरणानां मूळ स्थानो [ ] आवां निशामां आपेलां अने ज्यां आवुं निशान खाली बतावेल छे त्यां मूळ स्थान मळी शक्युं नथी. पण्डितजीए धातुओना अङ्को परदेशमां मुद्रित धातुपारायण प्रमाणे जणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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