Book Title: Ratna karavatarikadya sloka satarthi
Author(s): Jinmanikyavijay, Bechardas Doshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 25
________________ आवा गूढ चित्रकाव्यनु आवं मूल्यांकन छे तेम छतां ए तो जरूर कबूल करवू जोइए के आवी रचना कोई आलतुफालतु जोडकणा करनारो कवि नहीं ज करी शके पण जेनी प्रतिभासहित कल्पनाशक्ति तेजस्वी होय अने जे सखत परिश्रमवृत्तिवाळो होय ते ज आवां गूढ चित्रकाव्यनी रचना करवा समर्थ थई शके छे. १०-सार्थ एकाक्षरी कोशोनुं प्रामाण्य साधार छे? ___अमरकोश वगेरे प्राचीन कोशोमां जे सेंकडो हजारो शब्दो जणावेला छे ते शब्दोनी व्युत्पत्ति ते ते धातुओ द्वारा बतावेली छे एटले एम समजी शकाय के ते तमाम शब्दोना अर्थो साधार छे—निराधार नथी पण प्रामाण्ययुक्त छे, 'वक्ति इति वक्ता' एम जाणवाथी 'वक्ता' शब्दनो सम्बन्ध 'वच्' धातु साथे छे अने तेथी 'वक्ता' शब्दनो 'बोलनार' ए अर्थ कांई कल्पित नथी तेम निराधार नथी तेम अप्रामाणिक पण नथी. अमरकोश करतां प्राचीन एवा निरुक्तमां अनेक वैदिक शब्दोनो संग्रह छे तेमां एकाक्षर शब्दो घणा ज ओछा छे अने जे 'शु' वगेरे केटलाक एकाक्षरी शब्दो निरुक्तमा नोंघेला छे पण साथे ज तेमना अर्थनो खुलासो धातुद्वारा के बोजा समान शब्दो द्वारा समजी शकाय तेवी रीते प्रतिपादन करेल छे. 'शु' एटले शीघ्र. 'आशु' अव्ययना एक अंशरूप 'शु' शब्द छे माटे 'शु' शब्दनो 'शीघ्र' अर्थ निराधार तो नहीं कही शकाय. आ दृष्टिए जोतां आचार्य हेमचन्द्र वगेरेए जे केटलाक एकाक्षरी शब्दो अने तेमना अर्थों आपेला ले ते अंगे आवो प्रश्न उठे छे के जे आपेला अर्थो छे ते ज बराबर छे अने बीजा अर्थो बराबर नथी तेनो शो प्रामाणिक आधार समजवो ? जेमके 'र' एटले तीक्ष्ण अथवा दहन-अग्नि. 'क' एटले सूर्य, मयूर, अग्नि, यम अने, अनिल-पवन. वळी बीजु, हेमचन्द्रे रचेला अनेकार्थसंग्रहमा तेम ज महेश्वर कविए रचेला विश्वप्रकाश नामना कोशमां पण एकाक्षरी शब्दो घणा थोडा छे अने त्यार पछीना समयमा जे जे एकाक्षरी कोशो रचायेला उपलब्ध थाय छे तेमां एकाक्षरी शब्दो घणा घणा वधारे मळे छे एटले ए वधारे मळेला शब्दो अने तेना बतावेला अर्थो विशे कोई पण प्रामाणिक आधार न. मळे त्यां सुधी ते शब्दो अने अर्थो बन्नेने विवादास्पदकोटिमां मुकवानुं मन थाय छे. कोई पण एकाक्षरी कोशकारे पोते बतावेला अर्थो विशे विशेष प्रामाणिक आधार बताववा माटे कश ज जणावेल नथी तेथी विशेष आश्चर्य थवा साथे मन ते अंगे वधु साशंक बने छे. अमारा परममित्र मुनिराज श्री पं. रमणिकविजयजीए राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालामां (राजस्थानप्राच्यविद्याप्रतिष्ठान-जोधपुर) 'एकाक्षरनामकोषसंग्रह' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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