Book Title: Ratna karavatarikadya sloka satarthi
Author(s): Jinmanikyavijay, Bechardas Doshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 20
________________ १५ याद समजी जाय अने पासे बेठेला दिवानने खोटुं पण न लागे । आ काम एक प्रतिभासंपन्न चारणने सोंपवामां आव्युं. चारणे संध्यानो वखत जोई हंजु दीवा नथी प्रगट्या एम जाणी राजाना दरबारमां जईने पोकार पाड्यो के "दीवानथी (दीवा नथी) दरबारमां छे अंधारुं घोर" राजा आ सांभळी चारणनी चतुराई समजी गयो अने तेने पारितोषिक आपी खुश कर्यो. एक कविए एक क्रूर मनुष्यनुं अने एक परोपकारी मनुष्यनुं 'भूतलोपकारी' एवा एक ज विशेषणथी वर्णन करेल छे. भूत+लोप+कारी ए वर्णन क्रूर मनुष्यनुं छे अने भूतल + उपकारी ए वर्णन परोपकारी मनुष्यनुं छे. रघुवंशमां "जगतः पितरौ वन्दे . पार्वतीपरमेश्वरौ " आ पद्यमां कवि श्रीकालिदासने तो श्रीमहादेव ज अभीष्ट छे. हवे जो श्रीकृष्णनो - लक्ष्मीपति - माधवनो कोई भक्त 'महादेव' अर्थने हानि पहोंचाड्या विना एमांथी पार्वतीपरमेश्वरौ एवो विभाग करीने रमेश्वर - श्रीकृष्ण-नो अर्थ दर्शावे तो जरा य अनुचित न गणाय. पण आवां द्विअर्थ के वधारे अर्थवाळां वर्णन सामान्य कवि करी शकतो नथी. जेनी प्रतिभा तेज होय अने कल्पना शक्ति विशेष उड्डयनवाळी होय ते कवि वा वक्ता ज आवा अर्थो बतावी लोकोना मननुं रंजन करी कीर्ति कमाई शके छे. चित्रो पण आवां विविध भाववाही थाय छे ऊंधुं - ऊंधेथी - जुओ तो बालकनुं चित्र लागे अने सामेथी जुओ तो वृद्धनुं चित्र लागे. आवा चित्रकारो पण प्रतिभासंपन्न ज होय छे. आ रीते विचारतां श्रीजिनमाणिक्य उपाध्याय प्रतिभासंपन्न अने विधविध कल्पनाना विहारी मालुम पडे छे. उणादिसहित व्याकरण, विविध शब्दकोशो तथा खास करीने एकाक्षरी कोशनुं जेनुं ज्ञान ताजुं होय ते पंडित ज आवा अनेकार्थप्रदनिना प्रयासमा सफल थई शके छे. अनेकार्थनी दृष्टिए विचारतां 'सिद्धये वर्धमानः ' इत्यादि लोकने नालिएर साथै सरखावी शकाय. नाळिएरमां पाणी घणुं ज मीटुं अने तर्पक छे तथा मां सुस्वादु मलाई जेवुं टोपलं पण मोजुद छे छतां नालिएरने उपरथी ए तां बन्ने एमां होय एवी कोई कल्पना नाळिएरने नहीं ओळखनारना मनमां आवती ज नथी पण ज्यारे नाळिएरनुं स्वरूप जाणवामां आवे तेनी ऊपरनां छोलां उखेडतां डिले परसेवो वळी जाय एवो श्रम करवामां आवे भने पछी तेने विशेष बळ साथै पथरा वडे वधेरवामां आवे अने ते फुटे पछी ज जे वात कल्पनामां हती तेनो साक्षात्कार आपोआप थाय छे तेम प्रस्तुत 'सिद्धये' इत्यादि श्लोकना अक्षरे अक्षरनुं पृथक्करण करवामां आवे त्यारे ज तेमांथी भातभातना अर्थोनो फुवारो छुटे छे अने ए द्वारा अर्थने बरा - बर समजनारो प्रसन्नता अनुभवे छे. श्लोकना अक्षरे अक्षरनुं पृथक्करण पण प्रतिभा अने कल्पनाशक्ति विना न थई शके माटे ज सामान्य पंडितजन माटे बतावेला अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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