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जैन मनीषियों द्वारा राजस्थान प्रदेश में सजित साहित्य-समृद्धि का इस लेख में यतकिंचित दिग्दर्शनमात्र हआ है। विशेष शोध करने पर उनके नये लेखक और अनेकों नवीन कृतियां प्रकाश में आ सकती हैं। अतः विद्वानों का कर्तव्य है कि राजस्थान के लेखकों और उनके कृतित्व पर शोध कर नतन जानकारी साहित्यिक जगत को दें।
परिशिष्ट
राजस्थान प्रदेश म उत्पन्न दो जनेतर साहित्यकारों को भी इस प्रसंग पर मुलाया नहीं जा सकता। एक हैं-पं. नित्यानन्द जी शास्त्री और दूसरे हैं श्री गिरिधर शर्मा।
____ 1. पं. नित्यानन्द शास्त्री:-प्रतिभा सम्पन्न आशुकवि और संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। जातितः दाधीच ब्राह्मण थे और थे जोधपुर के निवासी। शायद दो दशक पूर्व ही इनका स्वर्गवास जोधपुर में हआ है। पचासों जैन मन्दिरमार्गी साध-साध्वियों के ये शिक्षा गरु रहे हैं। जैन न होते हए भी जैन-दर्शन और जैनाचार्यों के प्रति इनकी प्रगाढ श्रद्धा थी। यही कारण है कि इनके बनाये हए कुछ महाकाव्य जैन साध-साध्वियों से संबन्धित प्राप्त होते हैं।
(क) पुण्यश्री चरित महाकाव्य:-यह अठारह सर्गों का काव्य है। इसमें खरतरगच्छीया प्रवर्तिनी साध्वी श्री पुण्यश्रीजी का जीवन चरित्रगं फित है। इसकी हिन्दी भाषा में "तात्पर्यबोधिनी" नाम की टीका नित्यानन्दजी के बड़े भाई विद्याभषण पं. भगवतीलाल शर्मा (प्रथमाध्यापक, वैदिक पाठशाला, जोधपुर) ने बनाई है। सं. 1967 की लिखित इसकी हस्तप्रति प्राप्त है।
(ख) श्री क्षमाकल्याण चरित:-इस काव्य में महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी के जीवन-चरित्र का आलेखन है।
___मेरी स्मृति के अनुसार श्री नित्यानन्दजी ने जैनाचार्यों पर दो लघुकाव्य और एक चित्र काव्य की और भी रचना की थी।
2. पं. गिरिधर शर्मा:-महामहोपाध्याय, साहित्यवाचस्पति, राजकवि श्री गिरिधर शर्मा झालरापाटन के निवासी थे। इनका भी स्वर्गवास इन दो दशकों के मध्य में ही हुआ है । संस्कृत और हिन्दी के प्रौढ़ विद्वान् थे। इनकी दो जैन रचनायें प्राप्त हैं:
मक्तामर स्तोत्र पादपूर्ति कल्याणमन्दिर स्तोत्र पादपूति
यह दोनों ही पादपूर्तियां अन्तिम चरणात्मक न होकर चारों ही पाद पर की गई हैं।