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4 गीतिगुच्छ 5 गीतिसम्बोहः 6 गीतिगुम्फः
साध्वी संघमिबाजी साध्वी मंजुलाजी साध्वी कमलश्रीजी
स्तोत्र काव्य :
जैन परम्परा में भी भक्ति रस से स्निग्ध और आत्म निवेदन से परिपूर्ण बनेक स्तोत्र काव्यों का प्रणयन हुआ है । स्तोत्र काव्यों का प्रारम्भ आचार्य समन्तभद्र ने स्वयंभू स्तोत्र, देवागम स्तोत्र आदि स्तुति रचनाओं से किया । सिद्धसेन दिवाकर का 'कल्याण-मन्दिर स्तोत्र' तथा मानतंगाचार्य का मक्तामर स्तोत्र इस क्रम में विशेष उल्लेखनीय है। तेरापंथ के साह साध्वियों ने भी स्तत्र काव्यों को पर्याप्त विकसित किया है। उन्होंने स्वतन्त्र स्तोत्र काव्यों की रचना भी की है और समस्या पूर्तिमूलक स्तोत्र काव्यों की रचना भी की है । समस्या-पूर्तिमूलक स्तोत्र काव्यों में किसी अन्य काव्य के श्लोकों का एक-एक धरण लेकर उस पर नई श्लोक रचना के द्वारा नये काव्य की रचना की जाती है। इस पद्धति का प्रारम्भ जैन परम्परा में सर्वप्रथम आचार्य जिनसेन ने किया। उन्होंने कालिदास के मेघदूत के समस्त पद्यों के समग्र चरणों की पूर्ति करते हुए पाश्र्वाभ्युदय की रचना की। मेघदूत जैसे शृंगार रस प्रधान काव्य की परिणति शान्त और संवेग रस में करना कवि की श्लाघनीय प्रतिमा का परिणाम है।
मेषदूत के चतुर्थ चरण की पूर्ति में दो जैन काव्य और उपलब्ध है। उनमें पहला 'नेमिदूत' है और दूसरा 'शीलदूत' है । नेमिदूत की रचना विक्रम कवि ने तथा शीलदूत की रचना चारित्रसुन्दर गणि द्वारा हुई है ।
__तेरापंथ के साधु-साध्वियों में समस्या पूर्ति स्तोत्र काव्यों का प्रवाह भी एक साथ ही उमडा। वि. सं. 1980 में सर्व प्रथम मुनि नथमल जी (बागोर) ने सिखसेन दिवाकर रचित कल्याणमन्दिर स्तोत्र की पादपूर्ति करते हुए दो 'काल-कल्याण-मन्दिर' स्तोत्रों की रचना की । वि.सं. 1989 में आचार्य श्री तुलसी, मुनि धनराज जी (प्रथम) और चन्दन मुनि ने भी कल्याणमन्दिर स्तोत्र के पृथक-पृथक चरण लेकर कालू-कल्याण-मन्दिर स्तोत्रों की रचना की। यह क्रम क्रमशः विकसित होता गया और आगे चलकर मुनि कानमलजी ने मानतुंगाचार्य के भक्तामर स्तोत्र की पादपूर्ति करते हुए 'कालू भक्तामर' की रचना की तथा मुनि सोहनलाल जी (चूरू) ने कल्याण-मंदिर स्तोत्र और भक्तामर स्तोत्र की पादपूर्ति करते हुए क्रमशः कालू-कल्याण-मन्दिर और कालू-मक्तामर स्तोत्रों की रचना की ।
स्वतंत्र स्तोत्र काव्यों में आचार्य श्री तुलसी द्वारा रचित 'चतुर्विंशति स्तवन' विशेष उल्लेखनीय है । इसकी कोमल पदावली में अन्तःकरण से सहज निःसत भावों की अनस्यति है। इसकी रचना वि.सं. 2000 के आस-पास हुई थी। इसके अतिरिक्त स्तोत्र काव्यों की एक लम्बी श्रृंखला उपलब्ध है जिसमें उल्लेखनीय हैं:
मुनि नथमल जी (बागोर)
तेरापंथी स्तोत्रम् जिन चतुर्विशिका तुलसी-वचनामृतस्तोत्रम् देव-गुरूवर्म द्वात्रिशिका वीतराग स्तुति गुरु-गौरवम् देव-गुरु-स्तोत्रम् मातृ-कीर्तनम्
मुनि धनराजजी'प्रथम' चन्दन मुनि मुनि डूंगरमल जी मुनि सोहन लाल जी (चूरू)