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चुकी हैं जिनमें 8 पद्य रचनायें, 7 गद्य रचनायें एवं 3 रेखा टीकापरक रचनायें हैं। इनकी काव्य रचनायें हैं:
2.
1. जीवंधर चरित (1805)
वैपन क्रिया कोष (1795) अध्यात्म बारह खडी
विवेक विलास 5. श्रेणिक चरित (1782) 6. श्रीपाल चरित (1822)
चौबीस दण्डक भाषा 8. सिद्ध पूजाष्टक 9. सार चौबीसी
दौलतराम कासलीवाल के उक्त चरित एवं अध्यात्म सम्बन्धी ग्रन्थों का प्राधार प्राचीन प्राण एवं जैन शास्त्र है। डा. कस्तुरचन्द कासलीवाल ने अपनी कृति 'महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व और कृतित्व' में कवि का मांगोपांग अध्ययन प्रस्तुत करते हुए प्राचार्यत्व, काव्यत्व तथा वचनिका के क्षेत्र में दौलतराम की अप्रतिम गरिमा को प्रतिष्ठापित किया है। डा. कासलीवाल ने कवि की 'विवेक विलास' की विशेष प्रशंसा करते हए उसे काव्य प्रतिभा का सम्पूर्ण निदर्शन कहा है।
12. साहिबरामः--
साहिबराम की जीवनी के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती है। जयपूर के जैन मन्दिरों में इनकी रचनाओं की प्राप्ति तथा भाषा की दृष्टि से साहिबराम ढढाड के ही प्रतीत होते हैं। इनके पदों की संख्या 60 है।
13.
नवल:--
यह बसवा के रहने वाले थे। इनका सम्भावित जीवनकाल संवत 1790-1855 तक बतलाया जाता है। दौलतराम कासलीवाल से इनका घनिष्ठ सम्बन्ध था। इन्हीं की प्रेरणा से इनकी रुचि साहित्य में हई। बधीचन्द मन्दिर जयपुर के गुटका नं. 1087 तथा पद संग्रह नं. 492 में नवल के 222 पद मिलते हैं। नवल की 'दोहा पच्चीसी' नामक एक छोटी सी रचना बीसपंथी मन्दिर पुरानी टौंक के ग्रन्थांक 102 ब के पृष्ठ 6 पर अंकित है। नवल का एक चरित ग्रन्थ वर्धमान पुराण भी बतलाया जाता है।
14. नयनचन्द्र:
जयपूर के सभी प्रसिद्ध मन्दिरों बाबा दुलीचन्द भण्डार, आमेर शास्त्र भण्डार, बधीचन्द भण्डार में लगभग 246 पद नैन अथवा नैनसुख की छाप से मिलते हैं। उनको अभी तक प्रसिद्ध विद्वान् गोम्मटसार त्रिलोकसार जैसे जटिल शास्त्रों के टीकाकार जयचन्द छाबडा की रचना माना जाता है। पृष्ट प्रमाणों के अभाव में 'नैन' छाप के पदों को जयचन्द छाबडा के पद मान लेना सर्वथा संदिग्ध है। चरित ग्रन्थों को प्रशस्ति में तो कवि अपना परिचय लिख देता है, कोई चरित ग्रन्थ लिखने के अभाव में नयनचन्द हमें अपने परिचय से अवगत नहीं करा सके। अत: नयनचन्द नामक किसी भक्त कवि के होने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।