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सागवाड़ा बागड़ प्रदेश का प्रमुख नगर है जो सैकड़ों वर्षों तक भट्रारकों का प्रभाव केन्द्र रहा। यहां के मन्दिरों में विशाल एवं कलापूर्ण मूर्तियां विराजमान हैं जो इन भट्रारकों द्वारा प्रतिष्ठापित की गयी थी। सागवाड़ा को हम विशाल जैन मन्दिरों का नगर भी कह सकते हैं। यहां को प्राचीनता एवं भट्टारकों के केन्द्र स्थान की दृष्टि से शास्त्र भण्डार उतना महत्वपूर्ण नहीं है। फिर भी यहां अधिकांश भट्टारकों को कृतियां उपलब्ध हैं।
कोटा-बन्दी के ग्रन्थ भण्डार :
कोटा, बन्दी, झालावाड़ हाडौती प्रदेश के नाम से विख्यात है। राजस्थान में इस प्रदेश की संस्कृति एवं सभ्यता का इतिहास काफी पुराना है। जैन धर्म एवं संस्कृति ने इस प्रदेश को कब से गौरवान्वित किया यह अभी तक खोज का विषय बना हुआ है। लेकिन बन्दी, नैणवा, झालरापाटन का जैन ग्रन्थों में काफी वर्णन मिलता है क्योंकि इन नगरों ने जैन संस्कृति के विकास में खब योग दिया था।
खरतरगच्छीय शास्त्र भण्डार, कोटा में 1177 हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह है जो प्रमुखतः 15वीं, 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में लिखे हुए हैं। सबसे प्राचीन पाण्डलिपि रामलक्ष्मण रास की है जो संवत् 1415 को लिखी हुई है। इसी भण्डार में हिन्दी की प्रसिद्ध कृति बीसलदेव चौहान रास की पाण्डुलिपि भी उपलब्ध है। इसी प्रकार महोपाध्याय विनयमागरजी का संग्रह भी उल्लेखनीय है जिसमें लगभग 1500 पाण्डुलिपियां प्राप्त हैं। दिगम्बर जैन मन्दिर बोलसिरी के शास्त्र भण्डार में करीब 735 हस्तप्रतियों का भी संग्रह है। इस भण्डार के संग्रह से पता चलता है कि यहां 18वीं शताब्दी में हस्तलिखित ग्रन्थों का सबसे अधिक संग्रह हया था। सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि भट्टारक शुभचन्द्र कृत पाण्डवपुराण की है जो संवत 1548 में प्रतिलिपि की गयी थी। शुभचन्द्र का पल्य विधान रास, भट्टारक नरेन्द्रकीति का चन्द्रप्रभु स्वामी विवाहलो (संवत् 1702) एवं मुनि सकलकीर्ति की रविव्रत कथा का नाम उल्लेखनीय है।
बन्दी नगर में दिगम्बर जैन मन्दिर पार्श्वनाथ, आदिनाथ, अभिनन्दनस्वामी, महावीर एवं नेमिनाथ इन सभी मन्दिरों में हस्तलिखित भण्डार उपलब्ध हैं। यद्यपि इनमें किसी में भी 500 से अधिक प्रतियां नहीं हैं। लेकिन फिर भी यहां के शास्त्र भण्डार पूर्ण रूप से व्यवस्थित हैपार्श्वनाथ मन्दिर के शास्त्र भण्डार में ब्रह्म जिनदास के रामसीतारास की अब तक उपलब्ध पाण्डलिपियों में सबसे पुरानी पाण्डुलिपि है जो संवत् 1518 की लिखी हई है। इसी तरह नेमिनाथ (नागदी) के मन्दिर में रचित माधवानल प्रबन्ध की संवत 1594 की प्रति है। यहां कवि बचराज की कृतियों का अच्छा संग्रह है जो अन्यत्र नहीं मिलती।
झालरापाटन में ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन है जिसमें 1436 पाण्डलिपियां संग्रहीत हैं। हस्तलिखित ग्रन्थ संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी भाषा में उपलब्ध हैं तथा सिद्धान्त.
राण काव्य, कथा, न्याय एव स्तोत्र प्रादि विषयों से सम्बन्धित हैं। यह भण्डार पूर्णतः व्यवस्थित है।
नबी के समान नैणवा में भी प्रायः प्रत्येक मन्दिर में शास्त्र भण्डार हैं जो दिगम्बर जैन
सरापन्थी मन्दिर एवं अग्रवाल जैन मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन भण्डारों में पचासों ऐसी पाण्डुलिपियां हैं जो नणवा में ही लिखी गयी थीं। सबसे अधिक पाण्डलिपि 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में लिखी गयी हैं। सबसे अच्छा संग्रह बघेरवाल मन्दिर का के जिसमें सार सिखामण रास (भट्टारक सकलकोति), ब्रह्म यशोधर का नेमिनाथ गीत (18
जोत का पन्चेन्द्रियगीत (16वीं शताब्दी) आदि के नाम उल्लेखनीय है।