Book Title: Rajasthan ka Jain Sahitya
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Devendraraj Mehta

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Page 463
________________ 408 इति गणितसंख्या जैनाङ्कानां समाप्ता। इन अक्षरात्मक अंकों की उत्पत्ति की प्रादि कैसे हुई ? यह बता सकना कठिन है, पर प्रारम्भ के दो तीन अक्षरों के लिए लिखे जाते स्व, स्वि, स्ति, श्री अथवा ऊं नमः या श्री श्री श्री ये मंगलीक के लिए प्रयवत अक्षरों से प्रारम्भ हुअा विदित होता है। आगे के संकेतों का वास्तविक बीज क्या है? शोधकर वास्तविक निर्णय में अब तक विद्वानों की कल्पना सफल नहीं हो सकी है। शुन्यांक : जैन छेद आगमों की चूणि में जहां मास, लघु मास, गुरु, चतुर्लघु ,चतुर्गुरु, षड्लघु, षड्गुरु प्रायश्चित के संकेत लिखे हैं वहां उस संख्या का निदेश एक,चार, छ: शून्य के द्वारा किया गया है। यत: ., 00 .. 000 000, 00 .., ००० इस प्रकार खाली शून्य लघुता सूचक और काले भरे शून्य गुरुत्व सूचक हैं। शब्वात्मक अंक: जैनागम सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययनादि में वैदिक ग्रन्थों एवं ज्योतिष छंदादि विविध विषयक ग्रन्थों में, शिलालेखों, ग्रन्थ प्रशस्तियों व पुष्पिकानों में शब्दांकों का प्रयोग प्राचीन काल से चला पाता है। कुछ सार्वजनिक और कुछ सांप्रदायिक, पारिभाषिक, धार्मिक, व्यावज स्त यों के भेद की संख्या के आधार पर रूढ शब्दांकों का बिना भेद भाव से ग्रन्थकारों. कवियों और लेखकों ने उन्म क्त प्रयोग किया है, जिसकी तालिका बहुत बडी तैयार हो सकती है। यहां जिस-जिस अंक के लिए जिन शब्दों का प्रयोग हुआ है उसे दिया जा रहा है : 0 शून्य, बिन्दू, रन्ध्र, ख, छिद्र, पूर्ण, गगन, आकाश, वियत्, व्योम, नभ, अभ्र, अन्तरिक्ष, अम्बरादि । 1. कलि, रूप, आदि, पितामह, नायक, तनु, शशि, विधु, इन्दु, चन्द्र, शीतांशु, शीतरश्मि, सितरुच, हिमकर, सोम, शशांक, सुधांशु, निशेश, निशाकर,क्षपाकर, औषधीश, दाक्षायणी प्राणेश, अब्ज (चन्द्रवाचक अन्य शब्द भी),भू, भूमि, क्षिति, क्षमा, धरा, वसुधा, वसुन्धरा उर्वरा, गा. पथवी, धरणी, इला, कु, मही (पृथ्वी वाचक अन्य शब्द भी) जैवाकृत इत्यादि। 2. यम, यमल, युगल, द्वंद्व, युग्म, द्वय, पक्ष, अश्विन, नासत्य, दम, लोचन, नेत्र, नयन इक्षण, अक्षि.दष्टि, चक्ष, (नेत्र वाचक अन्य शब्द भी) कर्ण, श्रुति, श्रोत्र, कान वाचक शब्द, बाह, कर, हस्त, पाणी, दोष, भुज, (हाथ वाचक शब्द समूह), कर्ण, कूच, पोष्ठ गल्फ, जान, जंघा, (शरीर के यग्म अवयव वाचक अन्य शब्द), अयन, कुटुम्ब, रविचन्द्री इत्यादि। 3. राम, त्रिपदी, त्रिकाल, त्रिगत, त्रिनेत्र, लोक, जगत, भवन, (विश्व वाचक शब्द समह), गण, काल, सहोदरा, अनल, अग्नि, वह्नि, ज्वलन, पावक,वैश्वानर, दहन, तपन, हताशन, शिखिन, कृशानु, (अग्नि वाचक अन्य शब्द समूह), तत्व, त्रैत, होत, शक्ति, पुष्कर, संध्या, ब्रह्मा, वर्ण, स्वर,पुरुष, वचन, अर्थ, गुप्ति इत्यादि।

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