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ये बहुत बड़े समालोचक भी थे। इन्होंने मोहनविजय की सुप्रसिद्ध "चन्द चौपाई" की समालोचना दोहों में की है। उसमें छंद शास्त्रादि की दृष्टि से गम्भीर आलोचना की है। वस्तुतः अपने ढंग की यह एक ही रचना है। आनन्दघनजी के प्राध्यात्मिक पदों का अनसरण करते हुए आपने बहुतरी पद भी बनाये हैं जो बहुत ही प्रबोधक हैं। पद बहुतरी का एक पद उद्ध त दिया जाता है :--
भोर भयो अब जाग बावरे। कौन पुण्य तें नर भव पायो, क्यू सता अब पाय दाव रे। भो. 1। धन वनिता सुत भ्रात तात को, मोह मगन इह विकल भाव रे। कोई न तेरो तू नहीं काकउ, इस संयोग अनादि सुभाव रे ।भो. 21 प्रारज देश उत्तम गुरु संगत, पाई पूरब पुण्य प्रभाव रे। ज्ञानसार जिन मारग लाधौ, क्यों डूबै अब पाव नाव रे। मो. 3। चन्द चौपाई समालोचना का एक उदाहरण देखिये :--
ए निच्चै निच्चे करौ, लखि रचना को मांझ । छंद अलंकारे निपुण, नहि मोहन कविराज । x
x ना कवि की निन्दा करी. ना कछ राखी कान । कवि कृत कविता शास्त्र के, सम्मत लिखी सयान 121 दोहा त्रिक दश च्यार सै, प्रास्ताविक नवीन ।
खरतर भट्टारक गछ, ज्ञानसार लिख दीन ।। 39. उत्तमचन्द भण्डारी
ये जोधपुर के महाराजा मानसिंह जी के मन्त्री थे। अलंकार और साहित्य के प्राप उच्च कोटि के विद्वान थे। “अलंकार प्राशय" अपने विषय का बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ है । इसकी रचना सं . 1857 में हुई है। आपकी अन्य रचनाओं में "नाथ चन्द्रिका" सं. 1861 और तारक तत्व आदि प्राप्त हैं। 40. उदयचन्द भण्डारी
ये भी जोधपुर के महाराजा मानसिंहजी के मन्त्री और उत्तमचन्द भण्डारी के भाई थे। आप काव्य, साहित्य, छंद, अलंकार और दर्शन के भी अच्छे विद्वान थे। इनका रचना काल 1864 से 1900 तक का है। आपके सम्बन्ध में डा. कृष्णा महणोत ने शोध प्रबन्ध लिखा है। प्राप्त रचनाओं की सूची इस प्रकार है :छंद प्रबन्ध
13. विज्ञ विनोद 2. छन्द विभषण
14. विज्ञ विलास 3. दूषण दर्पण
15. वीतराग वादना 4. रस निवासू
16. करुणा बत्तीसी शब्दार्थ चन्द्रिका
साधु वन्दना ज्ञान प्रदीपिका
जुलप्रकाश जलन्धरनाथ भक्ति प्रबोध 19. वीनती 8. शनिश्चर को कथा
20. प्रश्नोत्तर वार्ता 9. आनुपूर्वी प्रस्तारबन्ध भाषा 21. विवेक पच्चीसी 10. ज्ञान सत्तावनी
22. विचार चन्द्रोदय 11. ब्रह्माविनोद
23. आत्मरत्नमाला 12. ब्रह्मविलास
24. ज्ञानप्रभाकर
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