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स्नेहलता जैन, सुश्री सुशीला वैद, प्रेमचन्द रांवका, भंवरलाल सेठी, माणिक्यचन्द्र जैन आदि के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। इनमें से श्री डा. लालचन्द जैन नाटयकार हैं और अब तक आपके दो तीन लघ नाटक प्रकाशित हो चुके हैं। डा. गंगाराम गर्ग ढढारी भाषा के कवियों पर लेख प्रकाशित करते रहते हैं। श्रीमती सुशीला देवी बाकलीवाल उदीयमान लेखिका है और आप समालोचनात्मक लेख लिखने में विशेष रुचि लेती हैं। श्रीमती सुदर्शन छाबडा जैन तत्वज्ञान पर लेख लिखती रहती हैं। श्री प्रेमचन्द रांवका भी यवा लेखक हैं और ब्रह्म. जिनदास पर खोज कार्य कर रहे हैं।
जैन साहित्य पर कार्य करने वाले विद्वानों में प्रमुख रूप से साहित्य, दर्शन एवं सिद्धान्त पर लिखने वाले लेखकों की सबसे अधिक संख्या है। प्राचीन जैन साहित्य को प्रकाश में लाने का सर्वाधिक श्रेय डा. कस्तुरचन्द कासलीवाल को है जिन्होंने सैंकड़ों संस्कृत, अपभ्रंश एवं राजस्थान के कवियों पर अपनी कृतियां एवं लेखों में प्रकाश डाला है तथा जो मदा लेखकों एवं विद्वानों को आगे बढ़ाने में सतत प्रयत्नशील रहते हैं ।