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मुनिश्री वत्सराजजी की कविताओं के दो संग्रह 'उजली आंखें' और 'अांख और पांख' के नाम से प्रकाशित हुए हैं। मापकी दृष्टि में 'सहज अनुभूति की सहज अभिव्यक्ति ही काव्य की परिभाषा है।' वत्स मुनि की कविताएं अपनी इस कसौटी पर खरी उतरती है, परन्तु उनकी अनुभूति में जिज्ञासामूलक चितन भी सम्मिलित है। जीवन के प्रति एक उद्दाम आस्था ने आपको प्रतिकूलताओं के साथ संघर्ष करने की शक्ति प्रदान की है :
गरल की प्यालियां कितनी ही विकराल क्यों न हों ? मधुरता की मीरा जब उन्हें पीएगी मधुधार बना लेगी।
मुनिश्री मानमलजी चिरकाल से कविताएं और चतुष्पदियां लिखते रहे हैं। उनकी रचनाएं विषय-वैविध्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। राजस्थानी के कई सिद्धहस्त कवि भी हिन्दी में यदा-कदा लिखते रहते हैं। मुनि मधुकरजी ने मधुरस्वर ही नहीं पाया है, उनके 'गुंजन' के गीत भाव और भाषा के माधुर्य से ओत-प्रोत हैं।
तेरापंथ के साध-समाज में ही नहीं, साध्वो-समाज में भी काव्य-साधना का क्रम वर्षों से पल रहा है। 'सरगम' की भूमिका में स्वयं प्राचार्यश्री तुलसी ने लिखा है, 'भावना नारी का सहज धर्म है। अतः नारी ही वास्तविक कवि हो सकती है। तेरापंथ के साध्वी समाज ने प्राचार्य प्रवर इस उक्ति को अपनी प्रखर साहित्य-साधना के द्वारा सत्य सिद्ध कर दिया है। अनेकानेक साध्वियां काव्य-क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का परिचय दे रही हैं। साध्वी मुखा श्री कनकप्रभाजी स्वयं एक रससिद्ध कवयित्री है, जिनकी कविताओं का थिम संकलन 'सरगम' के नाम से प्रकाशित हया है। वस्तुतः कनकप्रभाजी की कविताएं उनके भावों का इतिहास' हैं। उन्होंने भाषा की संप्रेषण-शक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए लिखा है :
आज स्वयं में भावों का लिखने बैठी इतिहास, पर भाषा पहुंचाएगी क्या उन भावों के पास ?
परन्, भाषा ने बहादर तक साध्वीप्रमुखाश्री का साथ निभाया है। उनकी भाषा सादिक होते हए भी सुक्ष्म भाव-छायापों को ग्रहण करने में सर्वथा समर्थ है। सहज सरल शब्दावली में उन्होंने जीवन के गहरे रहस्यों को उद्घाटित करने में सफलता पाई है:
सत्य एक है लेकिन कितनी हुई आज व्याख्याएं मूल एक पादप की फिर भी है अनगिन शाखाएं ।
साध्वीश्री मंजलाजी के तीन कविता संग्रह प्रकाशित हए.'प्रधखली पलके'. "जलती प्रशास' और 'चहरा एक हजारों दर्पण' । मंजुलाजी ने अपने काव्यदर्पण में मानव-मन की अनेक स्थतियों को प्रतिबिम्बित किया है। कवयित्री में अपने पाप के प्रति अटूट विश्वास है, जो उसे संघर्षों में शक्ति और सम्बल प्रदान करता है:
जानते हो स्वय का विश्वास ही जब तब जिलाता मारता है । समझ लो विष को सुधा फिर तो वही सच एक बार उबारता है।