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2. इतिहास के बोलते पृष्ठ--मुनि छत्रमल:-प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य भिक्षु के उत्क्रान्तिमय जीवन से जुड़ी घटनावलियों को शब्दों का आकार दिया गया है। घटनाओं की प्रामणिकता के लिए संदर्भ ग्रन्थों का भी उल्लेख किया गया है।
3. चमकते चांद--मुनि धनराजः-इस लघु कृति में तेरापन्थ के नव प्राचार्यों का अति संक्षिप्त जीवन इतिहास है । मागम साहित्यः
आगम संपादन का कार्य 25 वर्षों से चल रहा है। आगमों की भाषा प्राकृत है। मूल पाठ का संशोधन, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद, तुलनात्मक टिप्पणियां, शब्दानुक्रम, नामानुक्रम और समीक्षात्मक अध्ययन ये पागम संपादन के प्रमुख अंग है। इस शोध कार्य के वाचना प्रमुख हैंप्राचार्य श्री तुलसी और प्रधान संपादक तथा विवेचक है-मनि श्री नथमल जी। इस गुरुतर कार्य को सम्पन्न करने के लिए लगभग 20-25 साधु-साध्वियां जुटे हुए हैं। काल की इस लम्बी, अवधि में जितना कार्य हुआ है उसका कुछ भाग प्रकाशित हुआ है। हिन्दी में अनूदित और विवेचित आठ ग्रन्थ इस प्रकार हैं:--
1. आयारो (आचारांग) :- यह भगवान महावीर की वाणी का सबसे प्राचीन संकलन है। इसकी भाषा अन्यान्य आगमों से पृथक् पड़ती है। यह सूत्रात्मक है किन्तु यत्र तत्र विभिन्न छन्दों के एक-एक दो-दो तीन-तीन चरण भी उपलब्ध होते हैं। भगवान महावीर के जीवन और दर्शन का यह प्राचीनतम श्रोत है। इसका आधुनिक शैली में हिन्दी अनुवाद तथा टिप्पणी बहुत अपेक्षित थे। यह ग्रन्थ इसकी पूर्ति करता है। टिप्पणों तथा मूल के अनुवाद से जैन साधना पद्धति का सुन्दर चित्र प्रस्तुत होता है।
2. ठाणं (स्थानांग):- यह तीसरा अंग आगम है। इसमें एक से दस तक की संख्या के आधार पर हजारों विषयों की सूचना दी गई है। यह ग्रन्थ आध्यात्मिक तथ्यों तथा जैन परम्परा के मूलभूत सिद्धान्तों और परम्परा का आकर ग्रन्थ है। इसके विस्तृत टिप्पण जैन, बौद्ध और वैदिक परम्परागत अनेक नई सूचनाएं प्रस्तुत करता है। इस रूप में ग्रन्थ के प्रस्तुतीकरण अपने आप में एक अनोखा अनुष्ठान है।
3. समवायो (समवायांग):- यह चौथा अंग आगम है। यह भी सांख्यिक विधि से संकलित ग्रन्थ है। इसमें विविध प्रकार की सूचनाएं संकलित हैं।
4. उत्तरज्झयणाणि (उत्तराध्ययन):-यह संकलन सूत्र है। इसके छत्तीस अध्ययन है। इसमें अनेक ऐतिहासिक कथाओं के माध्यम से जैन परम्परा के अनेक तथ्यों को उजागर किया गया है। इसमें जैन योग तथा जैन तत्ववाद और परम्परा के अनेक अध्ययन है।।
__5. दसवे आलियं (दसर्वकालिक):--यह प्राचार्य शय्यंभव की रचना है। इसका रचना-काल वीर निर्वाण की पहली शताब्दी है। इसमें लगभग 750 श्लोक है। साधारणतया यह माना जाता है कि यह बहुत सरल सूत्र है। किन्तु संक्षिप्त शैली में लिखा गया यह सूत्र बहुत गढ़ है। प्रस्तुत संस्करण में इसके एक एक शब्द की मीमांसा प्रस्तुत की गई है। यह संस्करण इस ग्रन्थ गत विशेषताओं की अभिव्यक्ति करने में पूर्ण सक्षम है।
____6. उत्तराध्ययन एक समीक्षात्मक अध्ययन:- प्रस्तुत ग्रन्थ श्रमण परम्परा का प्रतिनिधि ग्रन्थ है। यह दो खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में श्रमण और वैदिक परम्परायें,