________________
359
शास्त्री की परीक्षा पास की। आप पंडितजी के प्रमुख शिष्यों में हैं। सन् 1961 में राजस्थान विश्वविद्यालय ने 'पापको राजस्थान के जैन ग्रन्थ भण्डारों पर शोधकार्य करने पर पी. एच. डी. को उपाधि से सम्मानित किया। गत 25 वर्षों से डा. कासलीवाल प्राचीन साहित्य की खोज एवं प्रकाशन में लगे हुए हैं। अब तक आपकी 20 से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें राजस्थान के जैन ग्रन्थ भण्डारों की ग्रन्थ सूची पांच भाग, प्रशस्ति संग्रह, प्रद्युम्न चरित, जिणदत्त चरित, राजस्थान के जैन सन्त, हिन्दी पद संग्रह, महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व और कृतित्व, शाकम्भरी प्रदेश के सांस्कृतिक विकास में जैन धर्म का योगदान और वीर शासन के प्रभावक प्राचार्य आदि हैं। राजस्थान के जैन सन्त विद्वत परिषद तथा महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व और कृतित्व साहित्य परिषद् द्वारा पुरस्कृत हो च की है। राजस्थान में जैन साहित्य को प्रकाश में लाने का प्रमुख श्रेय आपको ही है। आपके 350 से भी अधिक खोजपूर्ण लेख देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी भाषा व शैली दोनों ही सरल किन्तु भावपूर्ण हैं। आपकी भाषा शैली का नमूना इस प्रकार है:--
"राजस्थान के मध्य में स्थित होने तथा प्राकृतिक साधनों से रक्षित होने के कारण अजमेर अपने जन्म से ही देश के सर्वोच्च शासकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। यह नगर पृथ्वीपुर, अजयमेरु, अजयदुर्ग, अजयगढ़, अजयनगर, अजीर्णगढ़ जैसे विभिन्न नामों से प्रसिद्ध रहा है। सर्व प्रथम यह प्रदेश शाकम्भरी प्रदेश के अधीन रहा है लेकिन कुछ ही समय पश्चात् इसे इसकी राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त
हुा
।"
(शाकम्भरी प्रदेश पृष्ठ 15)
- अपनी विद्वता एवं महती साहित्य सेवा के कारण आप अब तक कितनी ही सामाजिक व साहित्यिक संस्थानों से सम्मानित हो चुके हैं। डा. कासलीवाल को राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में से कितनी ही रचनाओं को प्रकाश में लाने का श्रेय है। साहित्यान्वेषण उनके जीवन का स्वभाव बन गया है। इनकी लेखन शैली में माधुर्य है तथा अपनी बात को अत्यधिक स्वाभाविकता में रखते हैं ।
6. पण्डित गुलाबचन्द जैन दर्शनाचार्य :--पं. गुलाबचन्द का जन्म जयपुर जिले के गोनेर ग्राम में दिनांक 9-11-21 को हुआ। आपके पिता का नाम भूरामल जी छाबड़ा है। पंडित जी जैन दर्शन के अच्छे विद्वान् हैं। सन् 1969 से आप दिगम्बर जैन संस्कृत कालेज, जयपुर के प्राचार्य हैं। पंडित जी हिन्दी गद्य के अच्छे लेखक हैं। अब तक आपके एकांकी, नेमिराजुल संवाद आदि प्रकाशित हो चुके हैं ।
7. पं. भंवरलाल न्यायतीर्थ :--आपका जन्म जयपुर में संवत् 1972 में हुआ था। आपके पिता श्री गेंदीलाल जी भांवसा जयपुर के प्रसिद्ध संगीतज्ञों में से थे। पाप जयपूर नगर के प्रसिद्ध विद्वान्, पत्रकार , लेखक एवं कुशल वक्ता माने जाते हैं। गत 30 वर्षों से प्राप वीरवाणी का सम्पादन कर रहें हैं तथा इसके पूर्व जैन बन्धु तथा जैन हितेच्छु के सम्पादक रह चुके हैं। जयपूर के जैन दीवानों पर लेखमाला के रूप में आपके द्वारा लिखित खोज पूर्ण सामग्री
शित हो च की है। संयम-प्रकाश एवं बनारसी-विलास ग्रन्थों का अापने सम्पादन किया है। आपकी गद्य शैली सुन्दर है।
पंडित जी साहित्यसेवी के साथ ही समाज सेवी भी हैं तथा वीर निर्वाण भारती मेरठ द्वारा आप समाजरत्न की उपाधि से सम्मानित हो चुके हैं ।