________________
317
संवत् 1934 में इन्होंने बीस तीर्थंकर पूजा लिखी। चैतन आत्मा को भ्रमर की उपमा देते हुये कवि ने एक भावपूर्ण पद लिखा है
चेतन भौग पर में उलझ रहा रे छक मद मोह में प्रयानो भयो होले ।
3. जवाहरलाल शाह
ये भी जयपुर के निवासी थे तथा 20वीं सदी में हुए थे । वि. सं. 1952 में इनका स्वर्गवास हा । इनके द्वारा रचित चेतनविलास, आलोचना पाठ, वीस तीर्थंकर पुजा. स पूजा आदि पद्यमय रचनाएं मिलती हैं। हिन्दी में अनेक पद भी लिखे हुये मिलते हैं :--
ऐसा जग मोहि नजर नहिं प्रावे, पर तज अपनी अपनाये। जड पूदगल से पाप भिन्न लखि, चेतन गण कर भावे ।।
4. चैनसुख लुहाडिया
इनका जन्म जयपुर में संवत् 1887 में और स्वर्गवास सं. 1949 में हुआ था। ये हिन्दी के अच्छे कवि थे। आत्मबोध में दर्शन दशक, श्रीपति स्तोत, कई गुजाएं तथा फटकर रचनाएं पर्याप्त संख्या में उपलब्ध होती हैं। लुहाड़िया जी को समस्या पूर्ति का शौक था।
संगमरदान की शीर्षक समस्या पूर्ति देखिये :-- रानी जिनवच प्रतीत लांची सन तत्वरीत स्वातम अभीत जिन चाहे चिद बाने की, चाह पाकशासन, सुरासन की रही नांहि, कौन गिनती है मुकरण राष रानै की । उखरि गये मदन कभाव के प्राडारब फहरे है जिनन्द की पताका जीत पाने की, . ठोकि भुजदण्ड रण भूमि में पछारचो मोह शक्ल ध्यान चण्डा ये तंग मरदान की।
5. पं. चिमनलाल
ये बीसवीं शती के प्रारम्भ के कवि थे। सं. 1969 तक मौजूद रहने की बात कई लोगों से सुनी है। अर्हन्नीति और प्रायश्चित ग्रन्थों का इन्होंने हिन्दी अनवाद किया है। इनके अनेक फुटकर पद्य भी मिलते हैं। संसार की दशा का वर्णन करते हए कवि कहता है :--
जगत में कोई न दम की बात । मूंठी बांधे आया बन्दे, हाथ झुलाये जात । धन यौवन का गर्व न करना, यह नहिं जानत साथ। देख संभल प्रबल रिपू सिर पर काल लगावे बात । कोई बचाय सके नहिं उसमें पिता मित अरु भ्रात । छोड़ असत्य चोट पर - बनिता ये नित ठग ठग खात ।
6. मानन्दोपाध्याय
पूरा नाम श्री आनन्दीलाल जैन है। जन्म जयपुर में वि. सं. 1970 तथा स्वर्गवास वि. सं. 2000 में हुआ था। यद्यपि इन्होंने शास्त्री की परीक्षा उतीर्ण की थी लेकिन उपाध्याय