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4. तट दो प्रवाह एक--मुनि नथमल :--प्रस्तुत कृति दार्शनिक परिवेश में दर्शन, जावन, समाज-व्यवस्था के साथ अनिवार्यतः सम्बद्ध जीवन धर्म, राष्ट्र धर्म, एकता, अभय, अहिंसा, सह अस्तित्व आदि प्रश्नों की बुद्धिगम्य और तर्क संगत व्याख्या देती है ।
5. समस्या का पत्थर अध्यात्म की छेनी--मनि नथमल:---जहां अध्यात्म है वहाँ व्यावहारिकता का सामंजस्य नहीं है, यह एकांगीपन समस्या है। दूसरी ओर व्यवहार को पकड़ने वाले व्यक्ति सभी समस्याओं को सुलझाने में केवल व्यवहार को ही उपयोगी मानते हैं। हमारी समस्याएं बाहर के विस्तार से आ रही है किन्तु उनका मूल हमारे मन में है। 95 प्रतिशत समस्यायें हमारे मन से उत्पन्न होती हैं। अध्यात्म एक छेनी है, उससे समस्या के पत्थर को तराशा जा सकता है। मन की गहराई में पनपने वाली समस्याओं की गांठ खुलने पर मुक्ति की अनुभूति सहज हो जाती है। प्रस्तुत पुस्तक इसी सत्य की परिक्रमा किए चलती है।
____6. महावीर क्या थे?-मुनि नथमल:--महावीर क्या थे यह प्रश्न पहले भी पूछा जाता रहा है और आज भी पूछा जाता है। इसका उत्तर एक-सा नहीं दिया जा सकता। महावीर के जीवन के अनेक पायाम हैं। सभी पायाम यशस्वी और उज्ज्वल हैं। उन्होंने सत्य-संधित्सा की भावना से अभिनिष्क्रमण किया. सत्य की साधना की ओर एक दिन स्वयं सत्य हो गए। इस पुस्तक में उनके व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों की स्फट व्याख्या है और सत्य बनने का प्रशस्त मार्ग निर्दिष्ट है।
योग साहित्य :
1. तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो--मुनि नथमल:-प्रस्तुत पुस्तक अपनी अनन्त शक्तियों के प्रकटन का मार्ग दिखाती है। जैन योग और प्रासन, कायोत्सर्ग, भाव-क्रिया, मोह व्यह, संवेग निर्वेद प्रादि 24 योग विषयों पर जैन साधना की दृष्टि स्पष्ट की गई है।
2. मैं मेरा मन मेरी शान्ति--मुनि नथमल:--प्रस्तुत ग्रंथ में मन की एकाग्रता, अमनावस्था की उपलब्धि, धर्मतत्व का चिन्तन, व्यष्टि और समष्टि में अविरोध की साधना पर प्राधृत शास्वत प्रश्नों को विवेचित किया गया है। इसके तीन खण्ड हैं-मैं और मेरा मन, धर्म क्रान्ति और मानमिक शांति के 16 सूत्र ।
3. चेतना का ऊर्ध्वारोहण-मुनि नथमल:--अनेक लोगों की यह धारणा है कि जैनों की साधना-पद्धति व्यवस्थित नहीं है, या जैन योग नहीं है। यह पुस्तक इस धारणा को निराधार सिद्ध करती है। इस कृति में जैन योग पर दिए गए प्रवचनों तथा प्रश्नोत्तरों का संकलन है। इसमें अनुपलब्ध जैन साधना-पद्धति को अपने अनुभवों तथा साधना के प्रकाश में खोजने का प्रयत्न किया गया है ।
4. भगवान महावीर की साधना का रहस्य भाग, 1-2--मुनि नथमल:-भगवान् महावीर के युग में जो साधना सूत्र ज्ञात थे, आज वे समग्रतया ज्ञात नहीं है। इसमें उन साधना सूत्रों के स्पर्श का प्रयत्न किया है, जो अज्ञात से ज्ञात बने हैं। साधना के क्षेत्र में शरीर, श्वास, वाणी और मन को साधना पावश्यक होता है। इन पुस्तकों में इनकी साधना का मर्म उद्घाटित किया गया है। शरीर का संवर, श्वांस संवर, इन्द्रिय संवर, वाक संवर, प्राण आदि योग विषयों पर वर्तमान में प्रचलित साधना-पद्धतियों के परिप्रक्ष्य में जैन दृष्टिकोण उपस्थित किया गया है । इसमें चार अध्याय हैं-आत्मा का जागरण, आत्मा का साक्षात्कार, समाधि और इतिहास के संदर्भ में। तीसरे अध्याय में समाधि को जैन परिप्रेक्ष्य में उपस्थित करते हुए सामायिक सामाधि, ज्ञान समाधिः