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महिला लेखिकानों में शान्ता भानावत (लेखिका) ने जीवन की सामान्य घटनाओं को लेकर नैतिक प्रेरणा देने वाली धार्मिक-सामाजिक कहानियां और दैनन्दिन जीवन में घटने वाली बातों को लेकर कई जीवनोपयोगी प्रेरक लेख लिखे हैं। श्रीमती सुशीला बोहरा और रतन चौरड़िया के भी कुछ लेख प्रकाशित हए हैं ।
जैन संत सामान्यतः सीधे लेख नहीं लिखते। उनका अधिकांश साहित्य संपादित होकर प्रकाश में आया है। संपादकों की इस पंक्ति में यशस्वी नाम हैं पं. शोभाचन्द भारिल्ल
और श्री श्रीचन्द सुराणा 'सरस'। भारिल्ल जी ने अपने जीवन का अधिकांश भाग संपादनसेवा में ही समर्पित किया है। जवाहर किरणावली, दिवाकर दिव्य ज्योति, हीरक प्रवचन आदि के रूप में जो प्रवचन साहित्य प्रकाशित हुआ है उसका श्रेय आप ही को है। इधर सरसजी के संपादन में अधिकांश साहित्य प्रकाशित हो रहा है ।
समग्र रूप से कहा जा सकता है कि हिन्दी गद्य साहित्य के क्षेत्र में जैन संतों, साध्वियों और गृहस्थों की महत्त्वपूर्ण देन रही है। इस साहित्य में उत्तेजना का स्वर न होकर प्रेरणा का स्वर है। यह हमारी बाह्य वृत्तियों को उभाड़ता नहीं वरन् उन्हें अनुशासित कर अन्तर्मुखी बनाता है। जीवन को पवित्र, समाज को प्रगतिगामी और विश्व को शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की ओर उन्मुख करने में यह साहित्य बड़ा उपयोगी है।