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सत्य, संयम, तप, त्याग और ब्रह्मचर्य, इन दस धर्मों पर दस लघ पुस्तिकायें प्रकाशित की गई है। आपकी प्रवचन शैली का एक उदाहरण देखिए
'अब कचरे का ढेर कौनसा है ? हमारे भीतर जो ये क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय हैं ये ही सारे कचरे के ढेर हैं। इसी कचरे के ढेर में अपनी आत्मा के गुणरूपी अमूल्य रत्न दबे हुए हैं। इस ढेर में से जो प्रात्मार्थी पुरुष अन्वेषक बनकर, पक्का ढूंढ़िया बनकर अपने आपको उसमें आत्मसात करके खोजता है तो वे अमूल्य रत्न उसे मिल जाते हैं। भाई, ढूंढ़िया (अन्वेषक) बने बिना वे रत्न नहीं मिल सकते। ढूंढिया बने बिना न अाज तक किसी को मिले हैं और न आगे मिलेंगे इसीलिए कहा है 'जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठा'
(प्रवचन प्रभा से उद्धृत, पृष्ठ-254)
9. श्री मधुकर मुनि--
___ सौम्य और मधुर व्यक्तित्व के धनी मुनि श्री मिश्रीमल जी 'मधुकर', मधुकर की तरह ही गुणग्राही और आध्यात्मिक भावों की गुजार करने वाले हैं। मुनिश्री मधुर व्याख्याता होने के साथसाथ सरस कथाकार भी हैं। जीवन के नैतिक और धार्मिक अभ्यत्थान में आपकी रचनायें बड़ी प्रेरक और सहायक हैं। गहन विषयों को भी सरल ढंग से समझाने की आपकी अनूठी कला है। व्याख्यानों के पीछे आपका गहन चिन्तन और आत्म साधना का तेजोदीप्त अनुभव है। आपके प्रकाशित प्रवचन संग्रहों में 'अन्तर की अोर' दो भागों में तथा 'साधना के सूत्र' मुख्य है। 'अन्तर की ओर' में हृदय को शुद्ध, पवित्र और उज्ज्वल बनाने वाले प्रेरक तत्त्वों को लेकर दिये गये प्रवचन संकलित है। 'साधना के सूत्र' में आत्मा को साधुत्व के मार्ग पर बढ़ाने वाले मार्गानुसारी 35 दिव्य गणों का पौराणिक एवं नवीन उदाहरण देकर इस ढंग से विवेचन किया गया है क उनका कथन बड़ा ही स्पष्ट, रोचक, प्रभावक और मौलिक बन पड़ा है। साधना के ये सूत्र एक प्रकार से जीवन निर्माण के सूत्र कहे जा सकते हैं। एक नमूना देखिए--
"सद्गृहस्थ के जीवन को एक महावृक्ष की तरह माना गया है , जिसकी डालियों पर हजारों प्राणी अपना घोंसला बनाए जीवन गुजारते हैं। सैकड़ों हजारों प्राणों का आधार होता है और उसकी छाया में प्राणियों को जीवन मिलता है। वह वृक्ष यदि यह सोचे कि ये डालियां, शाखायें, पत्तियां और फूल निरे भार हैं, इनसे मुझे क्या करना है, मैं तो अकेला नंगा खड़ा रहूंगा तब भी अपना जीवन गुजार लूंगा तो इससे न उन प्राणियों को आश्रय मिलेगा और न वृक्ष की शोभा बढ़ेगी। वृक्ष का वृक्षत्व इसी में है कि वह अपने फल, फूल, शाखा, प्रशाखाओं का विस्तार करके हजारों जीवों को प्राश्रय देता रहे। इसी प्रकार हमारा जीवन है, जो स्वयं का विकास करता हया दूसरों के विकास में सहायक बने। निराश्रितों को प्राश्रय दे, शक्तिहीनों को शक्ति दे और जिन्हें पोषण की आवश्यकता है, दया की आवश्यकता है उन्हें संपोषण एवं शीतल छाया से रक्षित करे।
(साधना के सूत्र से उद्धृत, पृष्ठ 337) । सुगम साहित्यमाला के अन्तर्गत अनेकान्त, कर्म, अहिंसा, गृहस्थ धर्म, अपरिग्रह, तप, गुणस्थान, जैनतत्त्व, जैन संस्कृति, भगवान महावीर और उनकी शिक्षाओं पर मायकी 12 लघ, पुस्तिकाएं भी प्रकाशित हुई हैं।
मनि श्री का कथाकार रूप 'जैन कथामाला' के अद्यावधि प्रकाशित 12 भागों में प्रकट हना है। जैन आगमों और उनसे सम्बद्ध टीका ग्रन्थों में हजारों कथाएं बिखरी पड़ी हैं। उनका चयन कर आधुनिक शैली में उन्हें लिखने की महती आवश्यकता थी। यह ऐतिहासिक उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य इस शृंखला द्वारा पूरा हो रहा है। प्रारम्भ के छः भागों में सोलह सतियों और चौबीस तीर्थ करों की पावन जीवन कथायें दी गई है। सातवें और आठवें भाग में मगध के