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अनुशीलन, भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण एक अनुशीलन, भगवान पार्श्व एक समीक्षात्मक अध्ययन, ऋषभदेव एक परिशीलन, जैन दर्शन, स्वरूप और विश्लेषण प्रादि आपकी समीक्षात्मक ढंग से लिखी गयी शोध कृतियां हैं। इनसे आपके गहन अध्येता, प्रबुद्ध चिन्तक,
और सधी समीक्षक रूप का पता चलता है। इन कृतियों में आपकी शैली ऐतिहासिक और तुलनात्मक रही है।
आपका अन्य रूप सरस कथाकार और मधुर चिन्तक का है। आपकी हृदयहारिणी भावुकता, कल्पनाशीलता और साधना का स्वानुभव जिन कृतियों में प्रतिफलित हुआ है, उनमें प्रमख है--चिन्तन की चांदनि, अनुभति के आलोक में, विचार रश्मियां, विचार और अनभतियां, बिन्दू में सिन्ध, प्रतिध्वनि, खिलती कलियां:मस्कराते फूल आदि। ये कृतियां जीवन पथ पर बढ़ने वाले लोगों के लिए दीप स्तम्भ के समान हैं। इनमें मुनि श्री ने अपने व्यापक ज्ञान और अनुभव से समय-समय पर जो कुछ चिन्तन किया, उसे विभिन्न दृष्टान्तों, कथाओं, रूपकों और प्रसंगों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। इनमें प्रकट किए गये विचार मात्र अध्ययन के लिए न होकर मनन और आचरण की प्ररणा देने वाले हैं।
मुनि श्री का प्रवचन और निबन्ध साहित्य भी विशाल है। संस्कृति के अंचल में, साहित्य और संस्कृति, धर्म और दर्शन आदि कृतियों में यह संगृहीत है। आपकी शैली सहज, सरल और प्रभावपूर्ण है। कहीं भी वह दुर्बोध नहीं बनती। एक विशेष प्रकार के आन्तरिक अनुशासन से वह अनुगुंजित रहती है। एक उदाहरण देखिए--
"संस्कृतनिष्ठ व्यक्ति का जीवन कलात्मक होता है। वह जीवन अगरबत्ती की तरह सुगन्धित, गुलाब की तरह खिला हुआ, मिश्री की तरह मीठा, मखमल की तरह मुलायम, सूर्य की तरह तेजस्वी, दीपक की तरह निर्भीक और कमल की तरह निलिप्त होता है। उसके जीवन में प्राचार की निर्मल गंगा के साथ विचार की सरस्वती और कला की कालिन्दी का सुन्दर संगम होता
(संस्कृति के अंचल में से उद्धृत, पृष्ठ-4)
13. श्री गणेश मुनि--
आप सरस कवि और प्रोजस्वी व्याख्याता होने के साथ-साथ प्रबद्ध चिन्तक और शोधकर्मी विद्वान संत हैं। गद्य और पद्य दोनों पर आपका समान अधिकार है। पद्य के क्षेत्र में जहां आपने कई नये प्रयोग किए वहां अनुसन्धान के क्षेत्र को भी आपने नई दिशा दी। 'इन्द्र भति गौतम एक अनुशीलन' आपकी एक ऐसी ही कृति है। आगम साहित्य का अधिकांश भाग इन्द्रभूति गौतम और भगवान महावीर के संवाद-रूप में है। ऐसे महिमामय, असाधारण व्यक्तित्व पर जैन, बौद्ध और वैदिक साहित्य के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कर पहली बार विशद विवेचन प्रस्तुत किया गया है। अहिंसा जैन धर्म का ही नहीं भारतीय संस्कृति का प्राण तत्त्व है। इस पर विपुल परिमाण में तात्विक और सैद्धान्तिक निरूपण किया गया है। पर मुनि श्री ने वर्तमान युग की समस्याओं के समाधान के रूप में अहिंसा के रचनात्मक उपयोग का व्यावहारिक रूप प्रस्तुत कर उसे एक बहु-आयामी धरातल प्रदान किया है। 'आधुनिक विज्ञान
और अहिंसा' तथा 'अहिंसा की बोलती मीनारें' पुस्तकों में मुनि श्री का धर्म और विज्ञान को एक दूसरे के पूरक के रूप में प्रस्तुत करने का चिन्तन अभिनन्दनीय है ।
"हवाई जहाज के अन्दर दो यन्त्र होते हैं। एक यन्त्र हवाई जहाज की रफ्तार को घटाता-बढ़ाता है और दूसरा यन्त्र दिशा का बोधक होता है जिससे चालक हवाई जहाज की गति विधि को ठीक से संभाले रहता है। इसी प्रकार विश्व में दो शक्तिरूप यन्त्र अविराम गति से