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5. प्राचार्य श्री हस्तीमल जी म.--
ग्राप जैन समाज के क्रियाशील संत, उत्कृष्ट साधक,प्रखर व्याख्याता और गंभीर गवेषक विद्वान् हैं। आपकी वाणी में परम्परा और प्रगतिशीलता का हितवाही सामंजस्य है। गजेन्द्र मुक्तावली, आध्यात्मिक साधना, आध्यात्मिक पालोक, प्रार्थना प्रवचन, गजेन्द्र व्याख्यान माला भाग 1 से 3 में आपके कतिपय चात मास-कालीन प्रवचन संकलित किये गये हैं। आपके प्रवचन में कथा भाग कम, स्वानुभत साधना से प्रसूत वाणी का अंश अधिक रहता है। शास्त्र-सम्मत यह वाणी समाज और राष्ट्र की व्यापक समस्याओं का समाधानात्मक स्वरूप प्रकट करती हुई जब श्रोताग्रों के हृदय को स्पर्श करती है तो वे प्राध्यात्मिक रस में डबने-तैरने लगते हैं। प्राकृत, संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् होने के कारण आपकी भाषा परिष्कृत और प्रांजल होती है। वाणी से सहज ही सूक्तिया प्रस्फटित होती रहतो हैं। शास्त्र की किसी घटना या चरित्र को प्राध निक संदर्भ में आप इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि वह हमारे लिए अत्यन्त प्रेरणादायी और मार्गदर्शक बन जाता है।
अापके प्रवचन मूलतः आध्यात्मिक होते हए भी सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय एकता के भाव व्यंजित करने में विशेष सहायक रहते हैं। 'पाध्यात्मिक पालोक' में संग्रहीत प्रवचनों में प्रात्म-जाग्रति का स्वर प्रमख है। श्रमणोपासक मानन्द के जीवन का चित्रण करते हए एक ग्रादर्श सद्गृहस्थ के जीवन की भव्य झांकी प्रस्तुत की हुई है। आपकी ये पंक्तियां कितनी प्रेरणा दायक हैं
"जिस प्रकार एक चतुर किसान पाक के समय विशाल धान्य राशि पाकर खूब खाता, देता और ऐच्छिक खर्च करते हुए भी बीज को बचाना नहीं भूलता वैसे ही सम्यक् दृष्टि गृहस्थ भी पुण्य का फल भोग करते हुए सत् कर्म साधना रूप धर्म बीज को नहीं भूलता।'
(आध्यात्मिक साधना से उद्धृत, पृष्ठ-3)
'प्रार्थना प्रवचन' में प्रार्थना के स्वरूप, प्रार्थना के प्रकार, उसके प्रयोजन और उसकी सिद्धि पर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विवेचन उपलब्ध होता है। इसका अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हो च का है। 'गजेन्द्र व्याख्यानमाला' के पहले भाग में पर्वाधिराज पर्युषण के आठ दिनों में दिये गये पाठ प्रवचन संकलित हैं। प्राचार्य श्री ने पर्युषण के आठ दिनों को क्रमश: दर्शन दिवस,ज्ञान दिवस, चारित्र दिवस, तप दिवस, भक्ति दिवस, स्वाध्याय दिवस, दान दिवस और अहिंसाप्रतिष्ठा दिवस नाम से सम्बाधित कर तत्-सम्बन्धी विषयों पर मार्मिक उद्बोधन दिया है।
प्राचार्य श्री प्रखर व्याख्याता होने के साथ-साथ इतिहासज्ञ और शोधकर्मी विद्वान भी है। आप ही की प्रेरणा से जयपुर में आचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार व जैन इतिहास समिति की स्थापना हुई है। इनके माध्यम से लगभग 30,000 हस्तलिखित प्रतियों का विशाल संग्रह अस्तित्व में आया और 'पट्टावली प्रवन्ध संग्रह' तथा 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' के दो भाग प्रकाशित हुए। इन पत्थों में आचार्य श्री की श्रमशीलता, अध्ययन की व्यापकता, प्रमाण-पुरस्सरता, तथ्य भेदिनी सूक्ष्म दृष्टि और तुलनात्मक विवेचना पद्धति का परिचय मिलता है।
6. प्राचार्य श्री नानालाल जी म.--
आप प्राचार्य श्री गणेशीलाल जी म. के पट्टधर शिष्य हैं। आपका व्यक्तित्व भव्य और प्रभावक है। वाणी में पोज और आधनिक जीवन संवेदन है। आपके उपदेश सर्वजनहितकारी और समता दर्शन पर आधारित समाज के नव निर्माण के लिए प्रेरक और मार्गदर्शक होते हैं ।