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25. आत्म ज्ञान पंचाशिका
32. सभासार 26. विचारसार
33. सिखनख 27. षट्मतसार सिद्धांत
34. कोकपद्य 28. अात्म प्रबोधभाषा
35. स्वरोदय 29. आत्मसार मनोपदेश भाषा
36. शृंगारकवित्त 30. बृहच्चाणक्य भाषा
37. सौभाग्यलक्ष्मी स्तोत्र 31. लघु चाणक्य भाषा
इनकी समस्त रचनायें महो. श्री विनयसागरजी के संग्रह में उपलब्ध है। 41. गजल साहित्य
हिन्दी साहित्य में नगर वर्णनात्मक गजलों की एक लम्बी परम्परा जैन कवियों की रचनाओं के रूप में प्राप्त है। राजस्थान के श्वेताम्बर जैन कवियों ने राजस्थान के अनेक ग्राम, नगरों और बाहर के भी स्थानों-तीर्थों आदि की अनेक गजलें बनाई हैं। उनमें से कुछ गजलों की सूची इस प्रकार है :--
जोधपुर वर्णन गजल जोधपुर वर्णन गजल जोधपुर वर्णन गजल
हेम कवि मुनि गुलाबविजय
सं. 1866 सं. 1901 महाराजा मानसिंह के समय में सं. 1862 सं. 1865 सं. 1863
नागर वर्णन गजल मेड़ता वर्णन गजल सोजत वर्णन गजल
मनरूप,पद्य 83 मनरूप, पद्य 48 मनरूप, पद्य 67
बीकानेर वर्णन गजल
लालचन्द (लावण्य कमल)
सं. 1838
सचित्र विज्ञप्ति पत्र जो जैनाचार्यों को अपने नगर में पधारने व चातुर्मास करने के लिये लिखकर और चित्रित करके भिजवाये जाते थे, उनमें जिस नगर से और जिस स्थान को वह पत्र भेजा जाता था, उनमें उन नगरों का वर्णन गजल के रूप में प्रायः पाया जाता है। इनमें राजस्थान के अनेक नगरों का वर्णन तत्कालीन इतिहास और संस्कृति की दृष्टि से बहत ही महत्वपूर्ण पाया जाता है। 17 वीं शताब्दी से ऐसे नगर वर्णनों की परम्परा खड़ी बोली में 'गजल' के नाम से प्रारम्भ हई , जो 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक चलती रही।
20 वीं शताब्दी राजस्थान में हिन्दी का प्रभाव अंग्रेजों के शासन और मुद्रण युग में अधिक बढ़ा। राज दरबार में और शिक्षा-प्रचार में हिन्दी को प्रमुख स्थान मिलने से जिन्हों ने राजस्थानी में रचना की है, उनकी भाषा में भी हिन्दी का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। जैन लेखक सदा से जनभाषा का आदर करते रहे, इसलिए 20 वीं शताब्दी में अनेक विषयों के ग्रंथ हिन्दी में लिखे गये। जैन मन्दिरों में पूजा' गाने का प्रचार 19 वीं शताब्दी के उतरार्द्ध या अंतिमकाल से राजस्थान में अधिक बढा । अतएव खरतरगच्छ, तपागच्छ के प्राचार्यों, मुनियों और यतियों ने पूजा साहित्य काफी मात्रा में लिखा। उनमें से बहत सा साहित्य प्रकाशित भी हो चुका है और आज भी उसका अच्छा प्रचार है। गेय होने से संगीतात्मकता ने भी इसके प्रचार को विशेष प्रोत्साहन दिया। खरतरगच्छ के यतियों में सूगनजी (सुमति मण्डन) आदि ने काफी पूजाएं बनाई। इनसे पहिले यति बालचन्द जी ने 1913 बीकानेर में 'पंचकल्याणक पूजा' बनाई। इससे पहले उन्होंने 1909 में मुर्शिदाबाद में रहते हुए ‘सम्मेतशिखर पूजा' की रचना की थी। पूजायें सुगन जी रचित अधिक प्राप्त होती हैं, अतः सुगनजी का परिचय यहां दिया जा रहा है: