________________
258
अपेक्षा नहीं करता। प्रबंध में संपूर्ण काव्य के सामूहिक प्रभाव पर अधिक ध्यान दिया जाता है जब कि मुक्तक में एक-एक छंद की अलग-अलग साज-संभाल की जाती है।
पद्य की भांति गद्य की भी अपनी विशेष विधाएं हैं। प्रमुख विधानों में नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी, जीवनी, निबन्ध, प्रवचन, संस्मरण, यात्रावृत्त, गद्य-काव्य प्रादि सम्मिलित किए जा सकते हैं। कहना न होगा कि अाधुनिक हिन्दी जैन साहित्यकारों ने इन सभी विधानों में साहित्य रचा है ।
अध्ययन की दृष्टि से आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य को विधागत प्रवृत्ति की दृष्टि से इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है:--
(1) पद्य साहित्य :
(क) प्रबन्ध काव्य (ख) मुक्तक-काव्य
(2) गद्य साहित्य :
(क) नाटक, एकांकी (ख) उपन्यास, चरिताख्यान (ग) कहानी, लघु कथा, प्रेरक प्रसंग, गद्यकाव्य (घ) जीवनी (ङ) निबन्ध, प्रवचन (च) शोध-समालोचना
(1) पद्य साहित्य :
(क) प्रबन्ध काव्यः--प्राचार्यों ने प्रबन्ध काव्य के दो भेद किए हैं-- महाकाव्य और खण्डकाव्य। महाकाव्य का क्षेत्र विस्तृत होता है। उसमें संपूर्ण जीवन के विविध रूप चित्रित किए जाते हैं। खण्डकाव्य में किसी एक ही घटना को प्रधानता दी जाती है। प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश और राजस्थानी में प्रबन्ध काव्य के रूप में विपुल परिमाण में साहित्य रचा गया है। महाकाव्य के रूप में पुराण तथा चरित-संज्ञक अनेक रचनाएं लिखी गयी हैं। छोटी प्रबन्ध रचनाओं में रास, फागु, वेलि, चौपई आदि नामों से अभिहित रचनायें विपुल परिमाण में मिलती हैं ।
इसी परम्परा में आधुनिक हिन्दी प्रबन्ध काव्य लिखे गए हैं। वर्ण्य-विषय और पात्रसृष्टि की दृष्टि से अाधुनिक कवियों ने भी जैन परम्परा में मान्य शलाकापुरुषों, गणधरों, युगप्रधान प्राचार्यों तथा अन्य महापुरुषों कोही मूल आधार बनाया है पर कथावस्तु का गठन, उसका उठाव, विकास आदि में नई तकनीक का समावेश किया गया है। अब वे ढालबद्ध न होकर सर्गबद्ध हैं। इनमें नया छन्द विधान और नई राग-रागनियों का समावेश है। प्रकृति चित्रण, सौन्दर्य बोध, युग-चिन्तन आदि की दृष्टि से वे अधिक युगीन और सम-सामयिक सन्दभों से सम्पृक्त हैं।
(ख) मुक्तक काव्यः--मुक्तक के भी स्थूल रूप से दो भेद किए जा सकते हैं--गेय मुक्तक और पाठ्य मुक्तक। गेय मक्तकों में गायन तत्त्व की प्रधानता रहती है। सामान्यत: