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(३) हस्तलिखित प्रतियों के प्राधार पर महत्वपूर्ण कवियों की रचनाओं का व्यवस्थित
संकलन, सम्पादन और विस्तृत भूमिका के साथ कवि के कृतित्व का समीक्षात्मक . मूल्यांकन। (9) जैन मागमों का वैज्ञानिक पद्धति से प्रामाणिक सम्पादन, टिप्पण, समीक्षण
पौर हिन्दी में अनुवादन ।
(4) जैन धर्म का प्रामाणिक इतिहास लेखन और इतिहास की प्राधार भूत सामग्री
के रूप में पट्टावलियों, अभिलेखों आदि का संकलन-सम्पादन ।
(5) जैन दर्शन, साहित्य, तत्वज्ञान आदि से सम्बद्ध समीक्षात्मक, तुलनात्मक भौर
माधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में पुस्तक-निबन्ध लेखन ।
(6) जैन पारिभाषिक शब्दों और तत्व विशेष को लेकर कोश-निर्माण ।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि राजस्थान में जैन साहित्य की पद्य और गद्य विषयक प्रवृत्तियां मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों दृष्टियों से मानवतावादी साहित्य निर्माण की मोर सतत अग्रसर हैं। उनमें निरी धामिकता के स्थान पर उदात्त
व वैयक्तिकता के मारमरक्षी दायरे से निकल कर सामहिकता के व्यापक क्षेत्र में प्रवेश कर रही है।