________________
270
रचनाओं में सर्वाधिक प्रसिद्ध पुरंदर चौपई है। गुजरात के कवि ऋषभदास ने भी "सुकवि" के रूप में इनका उल्लेख किया है।
रचनामों की सूची इस प्रकार है :(1) बीरांगद चौपई, पद्य सं. 758, र. स. 1612, (2) भविष्य-भविष्या कोपई, पद्य सं. 647, सं. 1668 पंचउर,
रचना काल के उल्लेख वाली पहली रचना वीरांगनीपई और अंतिम रचना भविष्यभविष्या पई है। इसकी उसी समय की लिखित प्रति अभय जैन ग्रन्थालय में है। (3) विक्रम चौपई, 7 प्रस्तावों और 1725 पद्यों में है। (4) भोज चौपई, यह भी चार खण्डों में एवं 1700 पद्यों में है और पंचपूर में रची
गई है।
(5) अमरसेन वपरसेन चौपई, 410 पद्यों में रचित है। यह रचना शीलदेवसूरि
को प्राज्ञा से रचो गई है अतः सं. 1624 के बाद को है। (6) कोतिघर सुकौशल मुनि सम्बन्ध, पद्य 427 है। (7) स्थूलभद्र धमाल, पद्य 101, यह प्राचीन फागु संग्रह में प्रकाशित हो चुकी है। (8) राजुल नमि धमाल, पद्य 631 (9) नेमिनाथ नवभव रास, पद्य 230 । (10) देवदत्त चौपई, पद्य 530। (11) धनदेव पद्मरथ चौपई। (12) अंजनासुन्दरी चौपई, प. 158। (13) नर्मदा सुन्दरी गोपई। (14) पुरन्दर चौपई, पद्य 37। (15) पद्मावती पद्मश्री रास, पद्य 815 । (16) मृगांक-पद्मावती रास, पर 487। (17) माल शिक्षा चौपई, पद्य 67 | “(18) शील बावनी ।
(19) सत्य की चौपई, पद्म 446 । (20) सुरसुन्दर राजर्षि धौपई, पद्य 669 । (21) महावीर पारणा और स्तवन सहाय-पद प्राधि पापके रचित प्राप्त है। '
2. समयसुन्दर
राजस्थान के महाकवियों में महोपाध्याय समयसुन्दर बहुत बड़े ग्रन्थकार हुए हैं, जिनकी 563 लघ रचनाओं का संग्रह इनकी विस्तत जीवनी और रचनाओं की सूची के साथ "समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जली" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है। सं. 1649 में अपने प्रगुरु युगप्रधान जिनचन्द्र सूरि जी के साथ लाहोर में सम्राट अकबर से कवि का परिचय हुआ था और वहां सम्राट के काश्मीर प्रयाण के समय "राजानो ददते सौप्यम्" के 10 लाखसर्थ किये थे। तभी से कवि की रचनाओं में कई तो हिन्दी की ही हैं और कई राजस्थानी में होने पर भी हिन्दी का प्रभाव पाया जाता है ! जिनचन्द्रसूरि और अकबर के मिलन सम्बन्धी प्रष्टक में सर्वप्रथम हिन्दी भाषा का प्रयोग हुआ है। प्रतः एक पद्य नमूने के तौर पर नीचे दिया जा रहा है :
ए जी संतन के मुख वाणी सुणी, जिणचन्द मणिद महंत यति, तप जाप करइ गुरु गुर्जर मैं, प्रतिबोधत है भविकुसुमति । सब ही चित चाहन द्रूप भई, समयसुन्दर के प्रमु गच्छापति, पठइ पतिसाहि मजब्ब को छाप, बोलाए गुरु गजराज गति ॥1॥
सं. 1658 में अहमदाबाद में रचित होने पर भी कवि ने चीबीसी की रचना हिन्दी में की है। "ध्र पद छत्तीसी" और कई भक्ति पद कवि के रचे हुए बहुत ही भव्य एवं याकर्षक है। उदाहरण के तौर पर एक पद यहां दिया जा रहा है: