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15. बुधजन:--
इनका जन्म जयपुर शहर में निहालचन्द्र बज के यहाँ हुआ। बुधजन का दूसरा नाम भदीचन्द्र था। इनके पांच भाई और थे। इनके गुरु पं. मांगीलाल जी थे। बचपन से ही जैन धर्म और शास्त्रों में अधिक रुचि लेने के कारण बडे होने पर बुधजन बहुत विद्वान् हो गए। गहन पाण्डित्य के अतिरिक्त शका समाधान की भी इनमें अदभत क्षमता थी। बधजन दीवान अमर चन्द के यहां मुनीम का काम करते थे। इनका बनवाया हुअा भदीचन्द मन्दिर जयपुर के प्रसिद्ध जैन मन्दिरों में से है। बुधजन के निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध हैं :--
1. बुधजन सतसई 2. तत्वार्थ बोध
भक्तामर स्तोत्रोत्पत्ति कथा संबोध अक्षर बावनी योगसार भाषा पंचास्तिकाय भाषा पंच कल्याणक पूजा मृत्यु महोत्सव
छहढाला 10. इष्ट छत्तीसी 11. वर्द्धमान पुराण सूचनिका 12. दर्शनपच्चीसी 13. बारह भावना पूजन
14. पद संग्रह 16. माणिकचंदः--
माणिकचंद भांवसा गोत्रीय खंडेलवाल जैन थे। बाबा दुलीचंद भंडार जयपुर के पद संग्रह नं. 428 में इनके 183 पद प्राप्त हुए हैं, जो भक्ति और विरह के हैं। 17. उदयचन्द:--
यह जयपुर नगर अथवा इसके आस-पास के ही रहने वाले थे। उदयचन्द लुहाडिया गोत्रीय खण्डेलवाल जैन थे। इनका रचनाकाल संवत 1890 बतलाया जाता है। अभी तक उदयचन्द के लगभग 94 पद प्राप्त हुये हैं। प्राप्त पदों में पाराध्य का महिमागान तथा कवि का भवगुण निवेदन अधिक है।
18. पावदास:
पार्श्वदास जयपुर निवासी ऋषभदास निगोत्या के पुत्र थे। पाश्वंदास के दो बड़े भाई मानचन्द और दौलतराम थे। पार्श्वदास को प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से मिली। शास्त्रपठन और परमार्थ तत्व की ओर इनका झकान पं. सदासुखदास के सम्पर्क से हमा। पार्व. दास का साधना स्थल शान्तिनाथ जी का बडा मन्दिर जयपुर था। वहां इनके प्रवचन को सनने के लिये काफी जैन समदाय एकत्र होता था। पावदास के शिष्यों में बख्तावर कासलीवाल प्रमुख थे। उसे ही ये अपना पुत्र और मित्र समझते थे। पार्श्वदास अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में अजमेर रहने लग गये थे। वहां सर सेठ मूलचन्द सोनी के सान्निध्य में वैशाख सदि संवत् 1936 को इन्होंने समाधि मरण लिया।
पावदास का एक गद्य ग्रन्थ 'ज्ञान सूर्योदय नाटक की वचनिका' तथा समस्त काव्यरचनायें 'पारस-विलास' में संग्रहीत हैं। लघु ग्रन्थों की अपेक्षा कविवर पावदास की काव्य. प्रतिमा का पूर्ण निदर्शन उनके पदों में अधिक है। 43 राग-रागिनियों में लिखित 425 पदों