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झीणी चरचा रा बोल:
इसमें द्रव्य जीव और भाव जीव की सूक्ष्मता एवं गूढार्थ को सरल व स्पष्ट रूप में समझाया गया है। बीच-बीच में स्वामी जी के पद्यों तथा प्रागमों के उदाहरण भी प्रस्तुत किये गये हैं।
परम्परा बोल:
इस शीर्षक के अन्तर्गत दो गद्य कृतियां हैं। प्रथम कृति शय्यातर संबंधी परम्परा के बोल की है। इसकी भी छोटी व बडी दो तरह की कृतियां उपलब्ध होती हैं। इसमें उन परम्पराओं का उल्लेख मिलता है, जिनका प्रागमों द्वारा स्पष्ट संकेत प्राप्त नहीं होता किन्तु प्राचीन प्राचार्यों की परम्पराओं के अनुसार वर्तमान में जिनके प्राधार पर साधनों का व्यवहार चलता है। दूसरी कृति गोचरी संबंधी परम्परा के बोल की है। इसमें प्रागमों के अलावा गोचरी संबंधी परम्परामों का वर्णन किया गया है।
चरचा रतनमाला:
समय समय पर चर्चा रूप में पूछे गये विभिन्न प्रश्न तथा प्रागम व अन्य प्रामाणिक ग्रंथों के प्रमाणों के आधार पर उनके उत्तर इस ग्रन्थ में संकलित हैं। दिल्ली के तत्कालीन श्रावक लाला कृष्णचन्द्र जौहरी द्वारा पूछे गये प्रश्न भी इसमें हैं। कृति प्रधुरी प्रतीत होती है।
भिक्खु पिरछा:--
इसमें श्रावकों द्वारा समय-समय पर जयाचार्य से तत्व जिज्ञासा संबंधी पूछे गये 138 प्रश्न और उनके उत्तर हैं।
ध्यान:--
इससे संबंधित दो कृतियां मिलती हैं ध्यान बड़ा मौर ध्यान छोटा। बडे ध्यान में ध्यान कैसे करें? कैसे बैठे? भादि बातों का गद्य में वर्णन है। छोटे ध्यान में पंच परमेष्टियों के गणों का चिन्तन करते हुए प्रात्म-शुद्धि को भोर प्रेरित किया गया है। बडे ध्यान का भारंभ इस प्रकार हुमा है--
"प्रथम तो पदमासनादिक आसन थिर करि काया नौ चंचलपणों मेटी नै मन मो पिण चंचल पणों मेटणों। पर्छ मन बाहिर थकी अंतर जमावणों। विषयादिक
की मन में मिटाय में एकन प्राणणों। ते मन ठिकाणे माणवा निमित स्वासा सरत लगावणी--"
प्रश्नोत्तर सारघ सतक:--
इसमें प्राचार-विचार एवं मान्यता संबंधी 151 सार्द्धशतक प्रश्न और उनके उत्तर दिये गये हैं। रचना वि. सं. 1895 से पूर्व हुई प्रतीत होती है।
बृहद् प्रश्नोत्तर तत्वबोध:
मकसुदाबाद के श्रावक बाबू कालूराम जी ने प्रश्नोत्तर तत्वबोध काव्य कृति पढने के पश्चात् कुछ
शासाए आर प्रकट का, उन्ही के निराकरण स्वरूप प्रस्तुत कृति गय में बनानी प्रारंभ की किन्तु वह समयाभाव के कारण पूर्णमहो सकी।