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किया है वह कवि के संस्कृत एवं हिन्दी के अगाध ज्ञान का द्योतक है। यह भी संवत् 1824 की कृति है।
हरिवंश पुराण :
इस कृति का रचना काल सं. 1829 है। इसकी रचना जयपुर में ही सम्पन्न हुई थी। यह कवि की अन्तिम कृति है। 19 हजार श्लोक प्रमाण गद्य कृति लिखना दौलतराम के लिये महान् साहित्यिक उपलब्धि है। इसमें हरिवंश की कथा विस्तार से दी हुई है। पुराण के कितने ही प्रसंग ऐसे लगते हैं जैसे उन्होंने अपनी सारी शक्ति ही उलेटकर रखदी हो।
6. महापंडित टोडरमल:--
राजस्थानी गद्यकारों में महापंडित टोडरमल का विशेष स्थान है। उन्होंने टीकाओं एवं स्वतन्त्र ग्रन्थों के माध्यम से राजस्थानी गद्य के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनकी रचनाओं से पता चलता है कि पंडित जी की भाषा ढंढारी थी जो राजस्थानी भाषा की ही एक शाखा है। टोडरमल जी की भाषा में प्रवाह एवं लालित्य दोनों हैं।
पिता का नाम
टोडरमल जी का समय ईसा की अठारहवीं शती का मध्यकाल है। उनके पिता का नाम जोगीदास एवं माता का नाम रम्भादेवी था। पंडित जी के दो पुत्र हरिचन्द एवं गमानीराम थे। पंडितजी व्युत्पन्नमति थे, इसलिये थोडे ही समय में उन्होंने प्राकृत एवं संस्कृत पर पूर्ण अधिकार कर लिया। कन्नड़ भाषा का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था। अधिकांश विद्वान् उनकी आयु 27 वर्ष की मानते हैं लेकिन नवीन खोज के आधार पर वे 47 वर्ष तक जीवित रहे थे।
दो पुत्र हरिचन्द
। कन्नड़ भाषालय थोडे ही समय में
पंडित जी के प्रमुख गद्य ग्रन्थों में गोम्मटसार जीवकांड, गोम्मट सार कर्मकांड, लब्धिसार, क्षपणासार, त्रिलोकसार, मोक्षमार्ग प्रकाशक, प्रात्मानुशासन, पुरुषार्थसिद्धयुपाय एवं रहस्यपूर्ण चिट्टी के नाम उल्लेखनीय हैं। इनमें मोक्षमार्ग प्रकाशक एवं रहस्य पूर्ण चिट्री उनकी स्वतंत्र कृतियां हैं तथा शेष सब प्राकृत एवं संस्कृत ग्रन्थों पर राजस्थानी टीकायें हैं। गोम्मटसार जीवकांड, गोम्मटसार कर्मकांड, लब्धिसार एवं क्षपणासार पर चारों टीकाओं को मिला कर उनका नाम 'सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका' रखा गया है। सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका विवेचनात्मक गद्य शैली में लिखी गई है। प्रारम्भ में 71पृष्ठों की पीठिका है जिसे हम अाधुनिक भाषा में भमिका कह सकते हैं। इसे पढ़ने के पश्चात् ग्रंथ का पूरा हार्द खुल जाता है।
'मोक्षमार्ग प्रकाशक' पंडित जी का स्वतन्त्र ग्रन्थ है एवं वह बड़ी ही आकर्षक शैली में लिखा हुना है। इसमें सभी जैन सिद्धान्त के ग्रन्थों का मानों निचोड है। पंडितजी का यह अत्यधिक लोकप्रिय ग्रन्थ है जिसकी अब तक कितने ही प्रावत्तियां प्रकाशित हो चकी हैं। विवेचनात्मक गद्य शैली में लिखे जाने पर भी प्रश्नोत्तर के रूप में विषय का अच्छा प्रतिपादन किया गया है।
पंडितजी के गद्य का एक नमूना देखिये
- "तातें बहुत कहा कहिए, जैसे रागादि मिटावने का श्रद्धान होय सो ही श्रद्धान सम्यग्दर्शन है। बहुरि जैसे रागादि मिटावने का जानना होय सो ही सम्यग्ज्ञान है। बहुरि जैसे रागादि मिटें सो ही आचरण सम्यक् चरित्र है। ऐसा ही मोक्षमार्ग मानना योग्य है।"
पं. टोडरमल जी की वाक्य रचना संक्षिप्त और विषय-प्रतिपादन शैली तार्किक एवं गम्भीर है। व्ययं का विस्तार उसमें नहीं है पर विस्तार के संकोच में कोई विषय अस्पष्ट नहीं रहा है । लेखक