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मतिशेखरः-
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इसके पश्चात् उपकेशगच्छीय मतिशेखर सुकवि हो गये हैं । इस कवि की कई रचनायें प्राप्त होती हैं । यद्यपि उनमें रचना स्थान का उल्लेख नहीं है पर उपकेशगच्छ मारवाड़ के ओसिया गांव के नाम से प्रसिद्ध हुआ और उसका प्रचार प्रभाव भी राजस्थान में अधिक रहा, इसलिये मतिशेखर की रचनायें राजस्थान में ही रची गई होंगी । इनके रचित 1. धन्नारास, संवत् 1514 पद्य 328; 2. मयणरेहा रास, संवत् 1537, गाथा 347 और 3. बावनी प्राप्त है । इनके अतिरिक्त 4. नैमिनाथ बसंत फुलडा फाग, गाथा 108; 5. कुरगडू महर्षि रास संवत् 1536, 6. इलापुत्र चरित्र, गाथा 165 और 7 मतिशेखर वाचक पद से विभूषित कवि थे ।
नेमिगीत है ।
रत्नचूड रास:
रत्नचूड रास नामक एक और चरित काव्य इसी समय का प्राप्त है पर उसमें रचना स्थान का उल्लेख नहीं है और विभिन्न प्रतियों में रचना काल और रचयिता संबंधी पाठ भेद पाया जाता है । इसी तरह की और भी कई रचनायें हैं जिनका यहां उल्लेख नहीं किया जा रहा है ।
श्राज्ञासुन्दर :
संवत् 1516 में जिनवर्द्धनसूरि के शिष्य श्राज्ञासुन्दर उपाध्याय रचित 'विद्या विलास चरित्र चौपई' 363 पद्यों की प्राप्त 1
विवाहले :
प्राचार्य कीर्तिरत्नसूर की जीवनी के सम्बन्ध में उनके शिष्य कल्याणचन्द्र ने 54 पद्यों 'श्री कीर्तिरत्नसूरि विवाहलउ' की रचना की । यह ऐतिहासिक कृति है। इसमें कीर्तिरत्नसूरि के जन्म से स्वर्गवास तक का संवतोल्लेख सहित वृत्तांत दिया गया है। इसी तरह का एक और भी विवाहल कीर्तिरत्नसूरि के शिष्य गुणरत्नसूरि के संबंध में पद्यमन्दिर गणि रचित प्राप्त हुआ है ।
कवि पुण्य नदि :
पुण्यनन्दि ने राजस्थानी में 32 पद्यों में 'रूपकमाला' की रचना की इस परः संस्कृत में भी टीकायें लिखा जाना विशेष रूप से उल्लेखनीय है । संवत् 1582 में रत्मरंग उपाध्याय ने इस पर बालावबोध नामक भाषा टीका बनायी और सुप्रसिद्ध कवि समयसुन्दर ने संवत् 1663 में संस्कृत में चूर्णि लिखी ।
राजशील :
खरतरगच्छ के साधु हर्ष शिष्य राजशील उपाध्याय ने चित्तौड में संवत् 1563 में 'विक्रम'चरित्र चौपई' की रचना की। इसमें खापरा चोर का प्रसंग वर्णित है । स्थान का उल्लेख इस प्रकार किया है :--
रचनाकाल और
पनरसइ त्रिसठी सुविचारी, जेठमासि उज्जल पाखि सारी । चित्रकूट गढ तास मझारि, भणतां भवियण जयजयकारि ।