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४. सुरपिता का दोहा 25. अंबड सन्यासी
24. रोहिणी 26. कर्म फल पद।
जयमल्ल जी की रचनाओं का परिमाण काफी विस्तत है। इनके कवि-व्यक्तित्व में संत कवियों का विद्रोह और भक्त कवियों का समर्पण एक साथ दिखाई पड़ता है। प्रबन्ध काव्य में उन्होंने तीर्थ करों, सतियों, व्रती श्रावकों आदि को अपना वर्ण्य विषय बनाया है। मुक्तक " काव्य में जैन दर्शन के तात्विक सिद्धांतों के साथ-साथ जीवन को उन्नत बनाने वाली व्यावहारिक बातों का सरल, सुबोध ढंग से निरूपण किया गया है।
संस्कृत, प्राकृत के विशिष्ट ज्ञाता होते हुये भी इन्होंने अपनी रचनायें बोलचाल की सरल राजस्थानी भाषा में ही लिखी हैं।।
(२) कुशलो जी :
इनका जन्म संवत् 1767 में सेठों की रीयां (मारवाड़) में हुआ। इनके पिता का नाम लाधूराम जी चंगेरिया और माता का कानू बाई था। संवत् 1794 में फाल्गुन शुक्ला सप्तमी को इन्होंने पूज्य आचार्य श्री भूधर जी म. से दीक्षा अंगीकृत की। आचार्य श्री जयमल्ल जी म. इनके बड़े गुरु भाई थे। संवत् 1840 ज्येष्ठ कृष्णा छठ को इनका स्वर्गवास हुआ। आप अपने समय के प्रभावशाली संत थे। पूज्य रत्नचन्द्र जी म. की परम्परा के ये मूल स्तम्भ माने जाते हैं। शास्त्रज्ञ विद्वान होने के साथ-साथ ये कवि भी थे। इनकी रचनायें ज्ञान भण्डारों में बिखरी पड़ी हैं। जिन रचनाओं की जानकारी मिली है उनमें स्तवन और उपदेशी पदों के अतिरिक्त 'राजमती सज्झाय', साधुगण की सज्झाय, दशारण भद्र को चौढालियो, धन्ना जी ढाल, नेमनाथ जी का सिलोका, विजय सेठ,-विजया सेठानी की सज्झाय, सीता जी की आलोयणा आदि मुख्य हैं।
(३) रायचन्दः
इनका जन्म संवत् 1796 की आश्विन शुक्ला एकादशी को जोधपुर में हुआ। इनके पिता का नाम विजयचन्दजी घाडीवाल तथा माता का नाम नन्दा देवी था। संवत् 1814 की आषाढ़ शुक्ला एकादशी को पीपाड़ शहर में इन्होंने आचार्य श्री जयमल्ल जी से दीक्षा व्रत अंगीकार किया । 65 वर्ष की आयु में संवत् 1861 की चैत्र शुक्ला द्वितीया को रोहिट गांव में इनका स्वर्गवास हुआ।
प्राचार्य श्री रायचन्द जी अपने समय के प्रख्यात कवि और प्रभावशाली प्राचार्य थे। इनकी वाणी में माधुर्य और व्यक्तित्व में आकर्षण था। जो भी इनके सम्पर्क में प्राता, इनका अपना बन जाता। सफल कवि, मधुर व्याख्याता होने के साथ-साथ ये प्रखर चर्चावादी भी थे। इन्होंने रीतिकालीन उद्दाम वासनात्मक श्रृगारधारा को भक्तिकालीन प्रशांत साधनात्मक प्रेम धारा की ओर मोड़ा। इनकी दो सौ से अधिक रचनायें उपलब्ध हैं। प्रमुख रचनाओं के नाम
• 1. इनके जीवन और कवित्व के संबंध में विस्तृत जानकारी के लिये देखिये:--
(अ) सन्त कवि आचार्य श्री जयमल्ल : व्यक्तित्व और कृतित्व--श्रीमती उषा बाफना। (ब) मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रंथ में प्रकाशित डा. नरेन्द्र भानावत का लेख 'संत
___ कवि प्राचार्य श्री जयमल्ल : व्यक्तित्व और कृतित्व', पृ. 137-15 5 । 2. इनकी हस्तलिखित प्रतियां अ. वि. ज्ञा. भ. जयपुर में सुरक्षित हैं।