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19.
चित्र-काव्यों में कवि की रूपक योजक-वत्ति काम करती रही है। 'ज्ञान कुंजर और शीलरथ' के रूपकात्मक चिन अत्यन्त सुन्दर बन पड़े हैं। गढार्थमूलक रचनाएं कट शैली में लिखी गई हैं।
तिलोक ऋषि का छन्द प्रयोग भी विविधता लिये हए है। दोहा और पद के अतिरिक्त इन्होंने रीतिकालीन कवियों के सवैया और कवित्त जैसे छन्द को अपनाकर उसमें जो संगीत की गूंज
और भावना की पवित्रता भरी है, वह अन्यतम है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि तिलोक ऋषि के काव्य में भक्तियग की रसात्मकता और रीति यग की कलात्मकता के एक साथ दर्शन होते हैं।
(18) किशनलाल :--
ये प्राचार्य रतनचन्द जी म. सा. की परम्परा के मनि श्री नन्दलाल जी म. के शिष्य थे। इनकी रचनायें विभन्न ज्ञान भण्डारों में यत्न-तत्र बिखरी पडी हैं। इनकी रचनायें प्रौपदेशिक पदों और पद्यकथाओं के रूप में मिलती हैं। इनके पद अध्यात्म प्रवण और प्रात्म-कल्याण में साधक हैं। हमें जो रचनायें ज्ञात हई हैं उनमें नवकार मंत्र की लावणी, पंचपरमेठी गणमाला, चण्डरुद्र प्राचार्य की सज्झाय, सनतकुमार राजर्षि चौढालिया, कर्मों की लावणी, आदि उल्लेखनीय
(19) नेमिचन्द्र :--
इनका जन्म वि. सं. 1925 में आश्विन शुक्ला चतुर्दशी को बगडुन्दा (मेवाड) में हुआ। इनके पिता का नाम देवीलालजी लोढा और ता का कमला देवी था। इन्होंने प्राचार्य श्री अमरसिंह जी म. की परम्परा के छठे पट्टधर श्री पूनमचन्द जी म.सा. से संवत् 1940 फाल्गुन कृष्णा छठ को बगड़न्दे में दीक्षा अंगीकृत की। संवत 1975 में कार्तिक शवला पंचमी को छीपा का आकोला (मेवाड़) में इनका निधन हया। ये पाश कवि थे और चलते-फिरते वार्तालाप में या प्रवचन में शीघ्र ही कविता बना लिया करते थे। कवि होने के साथ-साथ ये प्रत्यत्पन्नमति और शास्त्रज्ञ विद्वान थे। इनकी प्रवचन शैली अत्यन्त चित्ताकर्षक और प्रभावक थी। इन्होंने धर्म-प्रचार की दृष्टि से गांवों को ही अपना विहार क्षेत्र बनाया। मेवाड़ के पर्वतीय प्रदेश गोगुन्दा, झाडोल, एवं कोटड़ा आदि क्षेत्रों को उन्होंने अपने उपदेशों से उपकृत किया। इनकी काव्य-प्रतिभा व्यापक थी। एक ओर इन्होंने रामायण और महाभारत के विभिन्न प्रसंगों को अपने काव्य का आधार बनाया तो दूसरी ओर जैनागमों के विविध चरित्रों को संगीत की स्वरलहरी में बांधा। इनकी रचनाओं में भक्ति भावना की तरंगिणी प्रवहमान है तो 'निह नव भावना सप्तढालिया' जैसी रचनाओं में युग के अनाचार और बाहय आडम्बर के खिलाफ विद्रोह की भावना है। 'भाव नौकरी', क्षमा माताशीतला, 'चेतन चरित' जैसी रचनात्रों में कवि की सांगरूपक योजना का चमत्कार दृष्टिगत होता है। 'नेमवाणी' नाम से इनकी रचनाओं का प्रकाशन हुअा है।
1. विशेष जानकारी के लिए देखिए(अ) कुमारी मधु माथुर का 'संत कवि तिलोक ऋषि : व्यक्तित्व और कृतित्व लघु
शोधप्रबन्ध (अप्रकाशित)। (ब) डा. शान्ता भानावत का 'तिलोक ऋषि की काव्य साधना' लेख, मुनि श्री हजारीमल
स्मति ग्रंथ में प्रकाशित, पृ. 168-173 । 2. प्रा. वि. ज्ञा. भ. ग्रन्थसूची भाग 1।। 3. सं. पुष्कर मुनि, प्र. श्री तारक गुरु ग्रंथालंभ, पदराड़ा (उदयपुर)।