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राजस्थानी पद्य साहित्यकार 4.
-साध्वी कनकश्री
सत्य एक है, अखण्ड है और शाश्वत है । लेकिन उसकी अभिव्यक्ति के स्रोत, साधन और परिवेश भिन्न-भिन्न होते हैं । यह विविधता साहित्यकार के विश्वजनीन व्यक्तित्व को भी सीमाओं, रेखाओं और नाना वर्गों में विभवत कर देती है । साहित्य की मूल प्रेरणा है प्रान्तरिक संघर्ष और अपनी अनुभूतियों को जन-सामान्य की अनुभूतियों में भिगो देने की एक तीव्रतम उत्कंठा । फिर भी प्रत्येक साहित्यकार की यह मजबूरी होती है कि वह अपने कथ्य को अपने परिवेश के आवेष्टनों से आवेष्टित करके ही विश्व के सामने प्रस्तुत करता है और विश्व चेतना उसे साम्प्रदायिकता की दृष्टि से देखने लगती है ।
इस दृष्टि से देखें तो सभी जैन सम्प्रदायों के यशस्वी विद्वानों ने राजस्थानी भाषा का समादर किया है और समय-समय पर उसके साहित्य भण्डार को बहुमूल्य ग्रन्थरत्नों का अर्ध्य चढ़ाया है । इस क्रम में तेरापंथ संघ की साहित्य-परम्परा ने भी अपने युग का सफल प्रतिनिधित्व किया है । तेरापंथ के श्राद्य प्रणेता प्राचार्य श्री भिक्षु से लेकर युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रवाहित स्रोतस्विनी की एक-एक धारा इस तथ्य को उजागर करती हुई आगे बढ़ रही है । तेरापंथ संघ के अनेक-अनेक मनिषियों ने राजस्थानी साहित्य को समृद्ध बनाने में अपना महत्वपूर्ण योग दिया है ।
प्रस्तुत है उनमें से कुछ चुने हुए साहित्यकारों का परिचय और उनकी पद्यबद्ध कृतियों की संक्षिप्त समीक्षा |
star श्री भिक्षु र उनकी साहित्य सेवा:
श्राचार्य श्री भिक्षु तेरापंथ धर्म संघ के प्रवर्तक थे पर अपने स्वतन्त्र दर्शन श्रौर मौलिक चिन्तन के आधार पर युग चेतना ने उन्हें युगप्रवर्तक थोर क्रान्त-द्रष्टा के रूप में सहज स्वीकृति
है |
प्राचार्य श्री भिक्षु की काव्य प्रतिभा नैसर्गिक थी । उन्होंने गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में अपनी अनुभूतियों को गूंथा है । वह समग्र साहित्य 38,000 श्लोक परिमित हो जाता है ।
उनकी पद्यमय कृतियां 'भिक्षु ग्रन्थ रत्नाकर' नामक ग्रन्थ में संकलित हैं । उसके दो खण्ड हैं। पहले खण्ड के 938 पृष्ठों में उनकी छोटी-बडी 34 कृतियां प्रकाशित हैं और दूसरे खण्ड के 712 पृष्ठों में 21 कृतियां ।
उनकी रचनाओं में सहज सौन्दर्य है, माधुर्य है, प्रोज है और है श्रद्भुत फक्कडपन के साथ पूर्ण अनाग्रहवृत्ति, ऋजु दृष्टिकोण, वीतराग प्रभु के प्रति अगाध श्रास्था, श्रागम वाणी के प्रति सम्पूर्ण समर्पण भाव और भ्रान्तरिक विनम्नता की सुस्पष्ट झलक है ।