________________
200
इनमें सांगानेर, रणथम्भौर, सांभर, टोडारायसिंह, हारसोर प्रादि स्थानों के नाम उल्लेखनीय हैं। अब तक इनकी निम्न रचनाएं उपलब्ध हो चुकी हैं।
नेमीश्वर रास (1615) सुदर्शन रास (1629) परमहंस चौपई (1636) आदित्यवार कथा चन्द्रगुप्त स्वप्न चौपई
हनुमन्त रास (1616) श्रीपाल रास (1630) जम्बूस्वामी चौपई चिन्तामणि जयमाल ज्येष्ठ जिनवर कथा
प्रद्युम्न रास (1628) भविष्यदत्त रास (1633) निर्दोष सप्तमी कथा छियालीस ढाणा
उक्त सभी कृतियों की भाषा राजस्थानी है तथा गीतात्मक शैली में लिखी हई है। ऐसा लगता है कि कवि अथवा इनके शिष्य इन कृतियों को सुनाया करते थे। इसलिये कृतियों की भाषा अत्यधिक सरल एवं रुचिकर है। भविष्यदत्त रास इनकी सबसे अच्छी कृति है जिसमें 115 दोहा-चौपई हैं तथा नगरों, वहां के बाजारों में चलने वाला व्यापार, रहनसहन आदि का भी सुन्दर वर्णन किया है। भविष्यदत्त रास में सांगानेर का इसी तरह का एक वर्णन देखिये:--
सोलहस तैतीस सार, कातिग सुदि चौदसि शनिवार, स्वाति नक्षिन सिद्धि शुभ जोग, पीडा दुख न व्याप रोग 19081 देस ढुंढाहड सोभा घणी, पूजै तहां आलि मण तणी । निर्मल तलौ नदी बहु फैरि, सुषस बस बहु सांगानेरि ।909। चहंदिसि बण्डा भला बाजार, भरे पटोला मोती हार। भवन उत्तुग जिनेसुर तणा, सोने चन्दवो तोरण घणा 19101 राजा राजे भगवतदास, राजकुवर सेवहि बहुतास ।
परिजा लोग सुखी सुख वास, दुखी दलिद्री पूरवै पास ॥ (15) छीतर ठोलिया:--
छीतर ठोलिया मोजमाबाद के निवासी थे। उनकी जाति खण्डेलवाल एवं गोन ठोलिया था। इनकी एक मात्र रचना होली की कथा संवत् 1650 की कृति है जिसमें उन्होंने अपने ही ग्राम मोजमाबाद में निबद्ध की थी। उस समय नगर पर आमेर के महाराजा मानसिंह का शासन था।
(16) हर्षकीति:
हर्षकीति राजस्थान के जैन सन्त थे। इन्होंने राजस्थानी एवं हिन्दी में कितनी ही छोटी बड़ी रचनायें निबंद्ध की थीं। चतुर्गति वेलि इनकी अत्यधिक लोकप्रिय रचना रही है जिसे इन्होंने संवत 1683 में समाप्त किया था। ये आध्यात्मिक कवि थे। नेमिराजल गीत, नेमीश्वर गीत, मोरडा, कर्महिण्डोलना, पंचगति वेलि आदि सभी आध्यात्मिक रचनायें हैं। कवि द्वारा निबद्ध कितने ही पद भी मिलते हैं जो अभी तक प्रकाश में नहीं पाये हैं। कवि की एक और रचना वेपनक्रिया रास की खोज की जा चुकी है। यह संवत् 1684 में रची गई थी।
(17) ठाकुर:
ठाकुर कवि 17वीं शताब्दी के कवि थे। कवि किस प्रदेश के थे तथा माता-पिता कौन थे इस संबंध में कोई जानकारी नहीं मिलती। इनकी एक मात्र कृति शान्तिनाथ पुराण की एक 1. शाकम्भरी के विकास में जैन धर्म का योगदान-डा. कासलीवाल, पृ. 471
-
-
-