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निवास स्थान :--
महाकवि का जीवन सार्वभौमिक एवं सार्वलौकिक होता है । भौगोलिक एवं राजनीतिक सीमाएं उन्हें बांध नहीं सकतीं । महाकवि रइधू ने अपनी किसी भी रचना में अपने जन्म-स्थान के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं दी किन्तु उनके अपने काव्यों में रोहतक, पानीपत, हिसार, जोगिनीपुर, ग्वालियर, उज्जयिनी आदि नगरों का नामोल्लेख किया है । रघु साहित्य के विशेषज्ञ ड. राजाराम जैन ने कवि के निवास स्थान के सम्बन्ध में अपना अभिमत लिखते हुए लिखा है कि "उनकी हिन्दी रचना बारह भावना में प्रयुक्त हिन्दी की प्रवृत्ति देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि उनका जन्म या निवास स्थान पंजाब एवं राजस्थान के सीमान्त से लेकर मध्यभारत के ग्वालियर तक के बीच का कोई स्थान होना चाहिये ।" हमारे विचार से तो कवि का जन्म राजस्थान का सीमान्त प्रदेश धौलपुर प्रदेश का कोई भाग होना चाहिये । वयस्क होने के पूर्व तक कवि का जीवन कोई विशेष उल्लेखनीय नहीं रहा इसलिये यह कहा जा सकता है कि कवि का प्रारम्भिक जीवन अपने जन्म-स्थान में ही व्यतीत हुआ और वयस्क होने पर एवं काव्य रचना में रुचि लेकर वे मध्य प्रदेश में चले गये । महापंडित आशावर मी राजस्थान को छोड़कर मालवा में जाकर बस गये थे और इसी शताब्दी में होने वाले प्राकृत एवं अपभ्रंश के महान् विद्वान् डा. नेमिचन्द्र शास्त्री भी अपने निवास स्थान धौलपुर को छोड़कर आरा ( बिहार ) में जाकर रहने लगे थे ।
महाकवि रइधू की सभी अपभ्रंश कृतियां भाषा एवं काव्य शैली में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं । कवि ने अपभ्रंश का जनभाषा के रूप में प्रयोग किया है और जहां तक संभव हो सका है उसने अपने काव्यों की भाषा को सरल एवं सुबोध बनाने का प्रयास किया है। रघू ने अपनी अधिकांश रचनायें किसी न किसी श्रेष्ठि के आग्रह अथवा अनुरोध पर निबद्ध की हैं । कवि ने अपने आश्रयदाता का विस्तृत वर्णन किया है एवं उसका उसके पूर्वजों सहित यशोगान गाया है । यही नहीं तत्कालीन शासकों का भी अच्छा वर्णन किया है जिससे कवि के सभी to इतिहास की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गये हैं । इनकी प्रशस्तियों के आधार पर तत्कालीन सामाजिक एवं राजनैतिक स्थिति का अध्ययन किया जा सकता 1
राजस्थान के ग्रंथ संग्रहालयों में रघु का साहित्य अच्छी संख्या में उपलब्ध होता है । जयपुर, अजमेर, नागौर, मौजमाबाद आदि स्थानों के ग्रंथ संग्रहालयों में कवि की अपभ्रंश कृतियां संग्रहीत हैं और सम्पादन के लिये अत्यधिक उपयोगी हैं । राजस्थान के अपभ्रंश कवि की दृष्टि से रइधू के साहित्य पर विशेष अध्ययन की आवश्यकता है । अब तक महाकवि धु के निम्न ग्रंथ प्राप्त हो चुके है:--
पउम चरिउ अथवा बलभद्र चरित
1.
2. हरिवंश पुराण
पज्जुण्ण चरिउ
पासणाह पुराण
5. सम्मत्त गुणनिधान
मेसर चरिउ
3.
4.
155
6.
7.
जीवंधर चरिउ
जसहर चरिउ
9. पुण्णासवकहाकोषु
8.
घण्णकुमार चरिउ
सुकोसल चरिउ
सम्मइ जिण चरिउ
सिरिवाल कहा
14. सिद्धान्तार्थसार
10.
11.
12.
13.