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2. दामोदर :--
कविवर दामोदर राजस्थानी कवि थे । इन्होंने अपने आपको मलसंघ सरस्वती गच्छ और बलात्कार गण के भट्टारक, प्रभाचन्द्र, पद्मनन्दि, शुभचन्द्र, जिनचन्द्र की परम्परा का बतलाया है। मट्टारक जिनचन्द्र का राजस्थान से गहरा संबंध था और ये राजस्थान के विभिन्न भागों में बिहार करते थे । आवां (टोंक) में इनकी अपने गुरु शुभचन्द्र एवं शिष्य प्रभाचन्द्र के साथ निषेधिकायें मिलती हैं। जिनचन्द्र ने राजस्थान में अनेक प्रतिष्ठा समारोहों का संचालन किया है । ऐसे प्रभावशाली एवं विद्वान् भट्टारक जिनचन्द्र का कविवर दामोदर को शिष्य होने का गौरव प्राप्त था ।
कविवर दामोदर की तीन कृतियां उपलब्ध होती हैं । ये कृतियां हैं सिरिपाल चरिउ, चंदप्पह चरिउ एवं णेमीणाह चरिउ । इन तीनों ही काव्यों को पाण्डुलिपियां नागौर के भट्टारकीय शास्त्र मरडार में उपलब्ध होती हैं ।
सिरिपाल बरिज:--
यह कवि का एक रमण काव्य है जिसमें सिद्धचक्र के महात्म्य का उल्लेख करते हुए उसका फल प्राप्त करने वाले चम्पापुर के राजा श्रीपाल एवं मैनासुन्दरी का जीवन परिचय दिया हुआ हैं। मैना सुन्दरी ने अपने कुष्ठी पति राजा श्रीपाल और उसके सातसौ साथियों का कुष्ठ रोग सिद्धचक्र के अनुष्ठान और जिनभक्ति की दृढ़ता से दूर किया था । काव्य में श्रीपाल के अनेक साहसिक कार्यों का भी वर्णन किया गया है । चरित काव्य में चार संधियां हैं । यह काव्य श्री देवराज के पुत्र साहू नरवत्तु के आग्रह पर लिखा गया था। काव्य अभी तक अप्रकाशित है ।
चंदप्पहचरिउ
यह कवि की दूसरी कृति है जिसमें आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभु के जीवन का वर्णन किया गया है । इसकी एकमात्र पाण्डुलिपि नागौर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है ।
मिणाहचरिउ :--
यह कवि की तीसरी अपभ्रंश भाषा की कृति हैं जिसमें 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ का कवि का यह काव्य भी अभी तक अप्रकाशित है । जीवन अत्यधिक रोचक ढंग से निबद्ध है ।
3. महाकवि रद्दधूः ---
महाकवि रहघ उत्तरकालीन अपभ्रंश कवियों में सर्वाधिक लोकप्रिय कवि । रचनाअं की संख्या की दृष्टि से अपभ्रंश साहित्य के इतिहास में इनका स्थान सर्वोपरि है । डा. राजा राम जैन ने रइबू की अब तक ज्ञात एवं अज्ञात 35 अपभ्रंश कृतियों का नाम उल्लेख किया है। इनमें मेहेसर चरिउ, णेमिणाहचरिउ, पासणाह चरिउ, सम्मजिणचरिउ, बलहद्दी चरिउ, प्रद्युम्न चरिउ, धन्यकुमार चरित, जसहरचरिउ, सुदंसणचरिउ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। महाकवि पर डा. राजाराम जैन ने गहरी छानबीन की है और 'रद्दधू ग्रन्थावली' के नाम से महाकवि के सभी उपलब्ध काव्यों के प्रकाशन की योजना पर कार्य हो रहा है।
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र साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन पू. 48