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महाकवि धनपाल
जैन साहित्य में धनपाल नाम के कई साहित्यकारों का उल्लेख मिलता है। पं. परमानन्द शास्त्री ने धनपाल नाम के चार विद्वानों का परिचय दिया है। । ये चारों ही भिन्न-भिन्न काल के विद्वान हये। इनमें से दो संस्कृत भाषा के विद्वान थे और दो अपभ्रंश के। प्रथम धनपाल संस्कृत के कवि राजा भोज के आश्रित थे, जिन्होंने दसवीं शताब्दी में 'तिलकमंजरी' और 'पाइयलच्छीनाममाला" ग्रन्थों की रचना की थी। द्वितीय धनपाल तेरहवीं शताब्दी के कवि हैं। उनके रचे हये ग्रन्थों में से अभी तक "तिलकमंजरीसार" का ही पता लग पाया है। ततीय धनपाल अपभ्रंश भाषा में लिखित "बाहुबलिचरित" के रचयिता हैं। इनका समय पन्द्रहवीं शताब्दी कहा गया है। ये गजरात के पुरवाड वंश के तिलक स्वरूप थे। इन की माता का नाम सहडा देवी और पिता का नाम सुहडप्रभ था। चतुर्थ धनपाल का जन्म धक्कड वंश में हुआ था। इनका कोई विशेष परिचय नहीं मिलता है। इनके पिता का नाम मातेश्वर और माता का नाम धनश्री था। कहा जाता है कि इन्हें सरस्वती का वर प्राप्त था। इनकी रची हई एक मात्र प्रसिद्ध रचना "भविसयत्तकहा" (भविष्यदत्तकथा) उपलब्ध होती है। अन्य किसी रचना के निर्माण का न तो उल्लेख मिलता है और न कोई संकेत ही। पता नहीं, किस आधार पर डा. कासलीवाल ने कवि धनपाल की जन्म-भूमि चित्तौडगढ मानी है2 । इसका एक कारण तो यह कहा जाता है कि कवि धनपाल का जन्म उसी धक्कड कुल में हुआ था, जिस में "धर्म परीक्षा" के कविवर हरिषेण और महाकवि वीर का जन्म हुआ था। यह वंश अधिकतर राजस्थान में पाया जाता है, इसलिये यह अनुमान कर लेना स्वाभाविक है कि कवि का जन्म राजस्थान में हआ होगा। इसके अतिरिक्त भविष्यदत्त कथा में कुछ राजस्थानी भाषा के शब्द भी पाये जाते हैं। हमारी जानकारी के अनुसार "तीमण" तीमन या तेमन मिष्ठान केवल राजस्थान में ही पाया जाता है। राजस्थानी संस्कृति के अभिव्यंजक निदर्शनों से भी यह सुचित होता है कि कवि धनपाल राजस्थान के निवासी होंगे। राजपूती आन-बान और शान का जो चित्रण महाकवि धनपाल ने किया है, वह अत्यन्त सजीव और हृदयग्राही है। अतएव राजस्थान के प्रति उनका विशिष्ट अनुराग अभिव्यंजित है।
पं. लाखू
पं. लाख विरचित "जिनदत्तकथा" अपभ्रश के कथाकाव्यों म एक उत्तम रचना मानी जाती है। कवि का जन्म राजस्थान में हुआ था। वे कुछ समय तक आगरा और बांदीकुई के बीच रायभा में रहे। हमारे विचार में पं. लाखू के बाबा रायभा के निवासी थे। वे जैसवाल वंश के थे। किसी समय वे सपरिवार तहनगढ में आकर बस गये थे। तहनगढ बयाना से पश्चिम-दक्षिण में पन्द्रह मील दूर है। इसका प्राचीन नाम त्रिभुवनगिरि है। करौली राज्य के मल संस्थापक राजा विजयपाल थे। उन्होंने 1040 ई. में विजयमन्दिरगढ नामक दर्ग का निर्माण कराया था। विजयपाल मथुरा के यदुवंशी राजा जयेन्द्रपाल या इन्द्रपाल (966992 ई.) के ग्यारह पुत्रों में से एक था। इसी विजयपाल के अठारह पुत्रों में से एक अत्यन्त पराक्रमी तिहणपाल नाम का राजा हुआ। त्रिभवनगिरि या तहनगढ इस तिहणपाल राजा ने बसाया था। तहनगढ म प्राचीन काल से यदुवंशी राजाओं का राज्य रहा है। ऐतिहासिक
1. पं. परमानन्द जैन शास्त्री : धनपाल नाम के चार विद्वान कवि, अनेकान्त, किरण 7-8
प. 82 । 2. डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल : ग्रन्थ एवं ग्रन्थकारों की भूमि-राजस्थान, अनेकान्त, वर्ष
15, किरण, 2, पृ. 78 । 3. द्रष्टव्य है : भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश-कथाकाव्य, पृ. 102-141 । 4. डा. ज्योतिप्रसाद जैन : शोधकण, “जैन सन्देश" शोघांक, भाग 22, संख्या 36, प. 811