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अच्छे विद्वान् थे और इन्होंने संवत् 1726 में 'गौतमस्वामीचरित' की रचना की थी। संस्कृत का यह एक अच्छा काव्य है। मारोठ (राजस्थान) में इसकी रचना की गई थी। उस समय मारो पर रघुनाथ का राज्य था। उक्त रचना के अतिरिक्त नेमिनाथ वीनती, सम्बोध पंचासिका एवं सहस्त्रनाम पूजा कृतियां और मिलती हैं।
19. पं. खेता
सम्यक्त्व कौमुदी के रचयिता पण्डित खेता राजस्थानी विद्वान् थे। यह एक कथाकति है जिसका राजस्थान में विशेष प्रचार रद्रा और यहां के शास्त्र भण्डारों में इसकी
रहा और यहां के शास्त्र भण्डारों में इसकी अनकों प्रतियां उपलब्ध होती हैं। सम्यक्त्व कौमदी की एक पाण्डलिपि संवत 1582 में प्रतिलिपि करवा कर चंपावती नगरी में ब. बचराज को प्रदान की गयी थी।ये वैद्य-विद्या में पारंगत थे और अपनी विद्या के कारण रणथम्भौर दुर्ग के बादशाह शेरशाह द्वारा सम्मानित हुये थे। 20. पण्डित मेधावी
पडित मेधावी संस्कृत के धुरन्धर विद्वान् थे। ये भट्टारक जिनचन्द्र के प्रिय शिष्य थे। इनके पिता का नाम उद्धरण साहु तथा माता का नाम भीषही था। जाति से अग्रवाल जैन थे। एक प्रशस्ति में उन्होंने अपने आपको पण्डित-कुंजर लिखा है।
अग्रोतवंशज : साधुर्लवदेवाभिधानकः । तस्वगुद्धरणः संज्ञा तत्पत्नी भीषुहीप्सुभिः ॥32॥ तयो पुत्रोस्ति मेघावी नामा पंडितकुंजरः ।
आप्तागमविचारज्ञो जिनपदाम्बुज षट्पदः ॥33॥ इन्होंने इसी तरह अन्य प्रशस्तियों में भी अपना परिचय दिया है । इन्होंने संवत् 1541 में धर्मसंग्रह श्रावकाचार की रचना नागौर में सम्पन्न की थी । वैसे इन्होंने इसे हिसार में प्रारम्भ किया था। उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि प्रस्तुत धर्मसंग्रह श्रावकाचार, समन्तभद्र वसुनन्दि एवं आशाधर के विचारों के आधार पर ही अपने आचार शास्त्र की रचना की है। इस ग्रन्थ की विस्तृत प्रशस्ति दी हुई है।
21. पण्डित जिनदास
पण्डित जिनदास रणथम्भौर दर्ग के समीप स्थित नवलक्षपर के रहने वाले थे। इसके पिता का नाम खेता था जिनका ऊपर परिचय दिया जा चुका है। पण्डित जिनदास भी आयुर्वेद विशारद थे। इन्होंने होली रेणुका चरित्र' की रचना संवत् 1608 में (सन् 1551 ई.) मे समाप्त की थी। रचना अभी तक अप्रकाशित है।
22. पण्डित राजमल्ल
पं. राजमल्ल संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे। वे जयपुर से दक्षिण की और 40 मील दूरी पर स्थित बैराठ नगर के रहने वाले थे। व्याकरण, सिद्धान्त, छंदशास्त्र और स्याद्वाद विद्या : पारंगत थे। अध्यात्म का प्रचार करने के लिये वे मारवाड, मेवाड एवं ढूंढाड के नगरों में म्रमा करते। इन्होंने आचार्य अमतचन्द्र कृत समयसार टीका पर राजस्थानी में टीका लिखी थी अब तक इनके निम्न ग्रन्थ उपलब्ध हो चुके हैं:-जम्बू स्वामीचरित्र, अध्यात्मकमलमालपर लाटी संहिता, छन्दो विद्या एवं पंचाध्यायी। जम्बूस्वामी चरित्र की रचना संवत् 1632